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________________ [ २८४ ] ऐस कहते हैं सो मिथ्यावादी है इसका विशेष विस्तार शास्त्रों के प्रमाण सहित इस ग्रन्थके अन्त में करने में आवेंगा, ३ तीसरा यह है कि खास दम्भप्रियेजीके गुरुजी श्रीन्यायाम्भोनिधिजीनें चतुर्थ स्तुतिनिर्णयः पुस्तक में श्रीखरतरगच्छके श्री अभयदेव सूरिजी श्रीजिनवल्लभ सूरिजी श्री जिनपतिसूरिजी वगैरह आचाय्योंकी समाधारियों के पाठ लिखे हैं और श्रीखरतरगच्छ के आचार्य्यका वचनको नही मानने वालोंको पृष्ठ के मध्य में मिथ्यात्वी ठहराये हैं ( इसका खुलासा इन्ही ग्रन्थके पृष्ठ १५० | १६० में छपगया है) और दम्भप्रियेजी श्रीखरतरगच्छ के आचार्य्यजीका लेख प्रमाण नही करके अपने गुरुजीके लेखसे ही आप मिथ्यात्वी बनते हैं सो भी बड़ीही आश्चर्य्यकी बात है ; ४ चौथा यह है कि दम्भप्रियेजी श्रीखरतरगच्छ के आचार्यजीका लेख प्रमाण नही करते हैं इसको देखके और भी कितनेही अज्ञानी तथा गच्छ कदाग्रही अपने अपने गच्छके आचाय्यका लेखको प्रमाण मान करके और सब गच्छवालों के आचाय्यका लेखको प्रमाण नही मानेंगे जिस मैं श्रीजिनवाणीरूपी पञ्चाङ्गीके सैकड़ो शास्त्रोंका उत्थापन होगा और अपनी अपनी मतिकल्पना करके चाहे जैसा वर्ताव करना संस करेंगे तो श्रीजिनेश्वर भगवान्की अति उत्तम, अविसंवादी, श्रीजैनशासनकी अखण्डित मर्यादा भी नही रहेगी और कदाग्रही लोग अपने अपने पक्षका आग्रह में फसके मिथ्यात्व बढ़ाते हुवे संसार वृद्धि करेंगे जिसके दोषाधिकारी दम्भप्रियेजी वगैरह होवेंगे और आप दूसरे गच्छके आचार्य का लेख प्रमाण नही करोंगे तो दूसरे गच्छवाले Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034484
Book TitleBruhat Paryushana Nirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManisagar
PublisherJain Sangh
Publication Year1922
Total Pages556
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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