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गर्थकर गणरायाले हरियावहारयाणक, सामयिकापर्युषणा
[ २ ] करनेके लिये यदि जपरके अक्षर प्रमाण करनेके लिये होवे तो-अधिक मासकी गिलती, तथा पचास(५०) दिने पर्युषणा और श्रीवीरप्रभुके छ (६) कल्याणक, सामयिकाधिकारे प्रथम करेमिभंते पीछे इरियावही वगैरह अनेक बाते श्री तीर्थङ्कर गणधरादि महाराजोंने और पूर्वधरादि श्रीजैन शासनके प्रभाविक पूर्वाचार्योने पञ्चाङ्गीके अनेक शास्त्रों में प्रगटपने खुलासेके साथ कही है जिस पर छठे महाशयजी की श्रद्धा नही जिससे प्रमाण नही करते हुए उलटा निषेध करके उत्सूत्र भाषणसें संसार वृद्धिका भय नही रखते हैं।
वहीही आश्चर्यकी बात है कि श्रीतीर्थङ्कर गणधरादि महाराजोंकी तथा पूर्वाचार्यों की कथन करी हुई अनेक बातें प्रमाण न करते हुए उत्सूत्र भाषणरूप अपनी मतिकल्प नासै चाहे वैसा बर्ताव करना और पूर्वाचार्यों का प्रमाण मंजूर करनेका दिखाकर आप भले बनना यह तो प्रत्यक्ष मायावृत्तिसें छठे महाशयजीने अपने दम्भप्रिये नामको सार्थक करके विशेष पुष्ट करनेके सिवाय और क्या लाभ उठाया होगा सो इन्ही ग्रन्यको पढ़नेवाले सज्जन पुरुष स्वयं विचार लेवेंगे ;- . ___ और आगे फिर भी दम्भप्रियेजीने लिखा है कि ( तुम्हारेही गच्छ के आचार्यका लेख प्रमाण न किया जावेंगा) यह लिखना छठे महाशयजी दम्भप्रियेजीको श्रीतीर्थङ्कर गणधरादि महाराजोंकी आशातना कारक पञ्चाङ्गीके अनेक शास्त्रोंका उत्थापनरूप मिथ्यात्वको बढ़ाने वाला संसार वृद्धिका कारणभूत हैं क्योंकि
१प्रथमतो-श्रीतीर्थङ्कर गणधरादि महाराजोंकी परम्
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