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[ २६९ ] मनन्त संसारकी वाद्विरुप यह भी नहान् उत्सत्र भाषण है।
१४ चौदहमा+श्रीननशासोंमें पदव्यरूप शाश्वती वस्तुयोर्मेसें कालद्रवरूपभी एक शाश्वती वस्तु है जिसका एक समयमात्र भी जो कालव्यतीत होणावें उसीका गिनती में कदापि निषेध नही हो सकता है यह अनादि स्वयं सिद्ध मर्यादा है तथापि आपलोग समय, आवलिका, मुहूर्त, दिन, पक्षसे, दो पक्षका जो एकमास बनता हैं उसी को गिनतीमें निषेध. करके अनादि स्वयं सिद्ध मर्यादाको अपनी कल्पनासे तोडमोडकरके ३० मासे-एकमासका गिनतीमें निषेध करनेके हिसाबर्स, ३० वर्ष-एकवर्ष, ३०युगेएकयुग, इसी तरहसें, ३० कोडा कोडी सागरोपमें-एक कोडाफोडी सागरोपमके कालको-उडा कर गिनतीमें निषेध करनेका वथा प्रयास करते हो सो भी यह महान् उत्सूत्र भाषण है। ___ और १५ पंदरहमा-जैनपञ्चाङ्ग का अबी वर्तमानकालमें विच्छेद है तथापि आपलोंगोंकी तरफसें मिथ्यात्वको वद्धिकारक मनमानी अपनी कल्पनाका पञ्चाङ्गको जैनपञ्चाङ्ग ठहराकर प्रसिद्ध करवाते हो सो भी उत्सूत्र भाषण है
१६ सोलहमा-श्रीनिशीथसबके भाष्यादि शाखोंमें सूर्योदयकी पर्व तिथिको न माननेवालेको मिथ्यात्वी कहा है और लौकिक पञ्चाङ्ग में दो चतुर्दशी वगैरह तिथियां होती है उसी में पर्वरूप प्रथम चतुर्दशी सूर्योदयसे लेकर महोरात्रि ६०पड़ी तक संपूर्ण चतुर्दशीका ही वर्ताव रहता है उसीमें अपर्व सूप त्रयोदशीके वर्तावका गम भी नही है. तथापि आप लोग अपने पक्षपातके जोरसे और पविताभिमानका
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