SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 371
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ [ २४३ ] प्रश्नोत्तर रूपे हैं जिसमें किसी मुम्बईवाले श्रावकने प्रम किया हैं कि ( पर्युषण पर्व पेला श्रावणमां करिये तो दोष लागेके केम ) इस प्रश्नका श्रीपालणपुर से श्रीवल्लभविजयजीनें यह जबाब दिया कि ( पर्युषणपर्व पेला श्रावणमां नज धाय आज्ञाभङ्ग दोष लागे ) इस लेखका मतलब ऐसे निकलता है कि गुजराती प्रथम श्रावण बदी हिन्दी दूसरे श्रावण वदीसें लेकर दूसरे श्रावण शुदीमें अर्थात् आषाढ़ चतुर्मासीसे पधात दिने पर्युषणा करने वालोंको जिनाज्ञा भङ्गके दूषित ठहराये तब श्रीलश्कर से श्रीबुद्धिसागरजीने श्रीपालणपुर श्रीवल्लभविजयजीको सुन्दर ओपमा सहित वन्दनापूर्वक विनय भक्तिसें एक पोष्टकार्ड लिख भेजा उसीमें लिखा था कि - आगष्ट मास की-८ वीं तारीखका जैन पत्रके १८ वें अङ्क में (पर्युषण पर्व पेला श्रावणमां नजधाय आज्ञाभङ्ग दोष लागे ) यह अक्षर जिस सूत्र अथवा वृत्तिके आधारसें आपने छपवाये होवें उसी सूत्र अथवा वृत्तिके पाठ लिखकर भेजने की कृपा करना आपको मध्यस्थ और विद्वान् सुनते हैं इस लिये आपने शास्त्र के प्रमाण बिना अपनी कल्पनायें झूठ नही छपवाया होगा तो जरूर शास्त्रपाठके अक्षर लिख कर भेजेंगे इत्यादि- इस तरहका पोष्टकार्ड में मतलब लिख कर खानगी में भेजाथा सो कार्ड श्रीवल्लभविजयजीको श्रीपालणपुरमें खास हाथोहाथ पहुंच गया परन्तु श्रीवल्लभविजयजीनें उस कार्डका कुछ भी प्रीका जबाब लिखकर नहीं भेजा जब कितनेही दिन तक तो जवाब आनेकी राह देखी तथापि कुछ भी जबाब नही आया तब फिर भी -C Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034484
Book TitleBruhat Paryushana Nirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManisagar
PublisherJain Sangh
Publication Year1922
Total Pages556
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy