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[२०] सत्य नहीं ठहर सकता. इसलिये ऊपर मुजब बातोंकी तरह अधिक महीनाभी लौकिक मुजब वर्तमानमें मान्य करना युक्तियुक्त न्याय संपन्न होनेसे निषेद्ध नहीं हो सकता। और यद्यपि जैन टिपणामें पौष आषाढ बढताथा उस वातको जिनकल्पी व्यवहारकी तरह सत्य मानना, श्रद्धा रखना, प्ररूपणा करना. मगर जिनकल्पी व्यव. हार अभी विच्छेद होने से उसको अंगीकार नहीं कर सकते, उसी तरह अभी जैन टिप्पणाभी विच्छेद होनेसे वर्तमानमें जैन टिप्पणा मुजब तिथि, वार, या पौष आषाढ महीने माननेका आग्रह करना सर्वथा अनुचित है। १८- जैन ज्योतिष्परसे अभी जैन टिप्पणा शुरू
हो सके या नहीं? यद्यपि जैन ज्योतिष्के चंद्रप्राप्ति-ज्योतिष्करंडपयन्नादि अ. नेक शास्त्र मौजूद हैं, उसपरसे तिथि-वार-मास-पक्ष-वर्षादिकका गणित हो सकता है। मगर ग्रहचार ग्रहणादि सब बाते बरोबर मिलान करना मुश्किल पडता है, इसलिये कितनीक बातों में अन्य आधार लेना पडता है. और लौकिक व जैन दोनोके गणितमें फेर होनेसे, तिथि-वार-मास व ग्रहणादि दोनोंके समान नहीं आसकते. और पूर्वगत गुरुगम्य आम्नायके अभावसे व अ. ल्पज्ञताके कारणसे यदि ग्रहणादि बतलानेमे न्यूनाधिक कुछ फरक पड जावे तो सर्वज्ञशासनकी लघुता होनेका कारण बनजावे। और परंपरागत जैनीराजाओंके अभाव होनेसे व ब्रह्मचारी, व्रत. धारी, गुरुगम्यतावाले कुलगुरुओका अभाव होनेसे तथा खरतरगच्छ नायक श्रीनवांगी वृत्तिकारक श्रीअभयदेसूरिजी, श्रीशांतिसू. रिजी, श्रीहेमचंद्राचार्य जी वगैरह समर्थ व प्रभावकाचार्योंके समयसेभी बहोत कालसे जैन टिप्पण विच्छेद होनेसे, अभी अपने अल्प बुद्धिवालोंसे फिरसे शुरू नहीं हो सकता । और कोई शुरू करें तो. भी सर्वमान्य युगप्रधान समर्थ आचार्य के अभावसे सबदेशोके सबगच्छोंके सब जैन समाजमें परंपरागत चल सकताभी नहीं। देखिये जैन शासनमें विशेष ज्ञानी समर्थ प्रभावक पूर्वीचार्योंके समय जो बात पहिलेसे विच्छद हो जावे उसको विशिष्टतर अवधिज्ञानादि रहित अल्पज्ञोसे इसकालमें फिरसे शुरू नहीं होस. के । इतने परभी शुरू करें तो पूर्वाचार्योंकी आशातनासे दोषके
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