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________________ [ २२१ ] पर्वतके चालीश योजनका शिखरको तथा अन्य भी हरेक पर्वतोंके शिखरों कों और देव मन्दिरोंके शिखरों को शास्त्रकारोंने क्षेत्रचूलाकी ओपमा दिवी है नतु केशांकी चोटीवत् घासकी, और श्रीपञ्चपरमेष्टि मन्त्रके शिखररूप चार पदों को तथा श्रीआवागङ्गकी सूत्रके शिखररूप दो अध्ययनकों और श्रीदशवकालिकजी सूत्रके शिखररूप दो अध्ययनकों शास्त्रकारोंने भावचूलाकी ओपमा दिवी है जिसकी अवश्यही गिनती करनेमें आती हैं। तैसेही। चन्द्र संवत्सररूप कालपुरुषके शिखररूप अधिक मासकों कालचूलाकी उत्तम ओपमा गिनती करने योग शास्त्रकारोंने दिवी है और अधिक मास होनेसें तेरह मासोंका अभिवर्द्धितसंवत्सर श्रीअनन्त तीर्थङ्कर गणधरादि महाराजांने कहा है सो अनेक शास्त्रों में प्रसिद्ध है और खास करके अधिक मासको कालचूलाको उत्तम ओपमा लिखने वाले श्रीजिनदास महत्तराचार्यजी पूर्वधर महाराज भी निश्चय करके गिनतीमें लेने का लिखते हैं,और भी दूप्तरा सुनों कि-जैसे। श्रीतीर्थङ्कर महाराजांके निज निज अंगुलियोंके प्रमाणसें मस्तक तक शरीरकी लंबाई १०८ अंगुलीकी होती है और मस्तक पर बारह अंगुलीकी उशिका (शिखा ) कों शिखररूप चूलाको ओपमा है जिसको सामिल लेकर १२० अंगुलीका श्रीतीर्थङ्कर महाराजांके शरीरके गिनतीका प्रमाण सबी शास्त्रकारोंने कहा है। तैसेही । संवत्सररुप कालपुरुष का निज स्वभाविक प्रमाण ३५४ दिन, १९ घटीका और ३६ पलका है तथा संवत्सररूप कालपुरुषका शिखररूप अधिक मासको कालचूलाकी ओपमा है जिसका प्रमाण २० दिन Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034484
Book TitleBruhat Paryushana Nirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManisagar
PublisherJain Sangh
Publication Year1922
Total Pages556
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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