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________________ [ २१९ ] और दूसरा यह है कि श्रीतीर्थङ्कर गणधर पूर्वधरादि महान् उत्तम पुरुषोंने सूत्र, चूर्णि, भाष्य, वृत्ति, नियुक्ति प्रकरणादि अनेक शास्त्रों में मासवृद्धिके अभावसें भाद्रपदमें पचास दिने पर्युषणा करनी कही है परन्तु एकावन ५१ में दिने श्रीजिनाज्ञाके आराधक पुरुषोंकों पर्युषणा करमा नही कल्पे और एकावन दिने पर्युषणा करने वालोंकों श्री जिनाजाके लोपी कहे है सो प्रसिद्ध है तथापि न्यायरबजी. इतने विद्वान् हो करके भी श्रीतीर्थङ्कर गणधरादि महाराजोंके वधनको प्रमाण न करते हुए अनेक सूत्र, चूण्यादि शास्त्रों के पाठोंको उत्थापते हुए मासवृद्धि दो श्रावण होते भी ८० दिने भाद्रपदमें पर्युषणापर्व करनेका लिखते कुछ भी उत्सूत्र भाषणका भय नही करते हैं यह वहाही अफसोस है; और दो श्रावण होते भी भाद्रपदमें पर्युषणा करनेसे प्रत्यक्ष ५० दिन होते हैं तथा अधिकमास भी शास्त्रानुसार और न्याययुक्ति सहित अवश्य निश्चय करके गिनतीमें सर्वथा सिद्ध है सो उपरमें भनेक जगह छपगया है इसलिये अधिक मासकी गिनती निषेध करना भी उत्सत्र भाषणरूप अन्याय कारक है तथापि न्यायरत्नजीने उत्सत्र भाषणका विचार न करते अधिक मासको गिनतीमें निषेध करनेके लिये जो जो विकल्प करके शास्त्रोंके विरुद्धार्थमें भोले जीवोंकी श्रद्धाभङ्ग होनेके लिये लिखा है उसीकी समीक्षा करता हुँ-जिसमें प्रथमतो दो श्रावण होनेसे भाद्रपद तक ८० दिन होते हैं जिसका अपनी कल्प. मासे ५० दिन बनानेके लिये न्यायरत्नजी लिखते है कि[कल्पसूत्रकी टीकामें पाठ है कि अधिकमास काल Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034484
Book TitleBruhat Paryushana Nirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManisagar
PublisherJain Sangh
Publication Year1922
Total Pages556
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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