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[ २१० नियां हो जावेगा इसलिये पूर्वापर विरोधी (विसम्बादी) वास लिखनेका जो विपाक श्रीधर्मरत्नप्रकरणकी वृत्ति कहा है (सो पाठ इसी ही पुस्तकके पृष्ठ ८६ : ८७ ६८८ में छप गया है) उसीके अधिकारी न्यायाम्भोनिधिजी हर गये सो पाठकवर्ग विचार लेना ;
और अधिकमासको तुच्छ न्यायाम्भोनिधिजी ठहराते हैं सो तो निःकेवल श्रीतीपंङ्कर गणधरादि महाराजोंकी आशातनाका कारण करते है क्योंकि श्रीतीर्थरादि महाराजोंने अधिकमासको उत्तम माना है (इसका अधिकार इसी ही पुस्तक में अनेक जगह वारम्वार छपगया है और आगे भी छपेगा) इस लिये अधिकमासको तुच्छ न्यायाभोनिधिजो को लिखना उचित नही था सो भी पाठकवर्ग विचार लो;___ और आगे फिर भी जैन सिद्धान्त समाचारीको पुस्तकके पष्ठ ९३ की प्रथम पंक्ति में १२ वी पंक्ति तक ऐसे लिखा है कि (हे परीक्षक और भी युक्तियां आपको दिखाते है कि यह जगत्के लोक भी बारामासमें जिस जिस मासके साथ प्रतिबद्धकार्य होते है सो तिस तिस मासमें अधिक मासको छोड़के अवश्य ही करते है जैसे कि आसोज मास प्रतिबद्ध दीवालीपर्व अधिक मासको छोड़के आसोज मासमें ही करते है और आम्बलकी ओली छमासके अन्तरम करनेकी भी अधिक मासको छोड़के आसोज मासमें और चैत्रमासमें करते है ऐसे अनेक लौकिक कार्य भी अपने माने मासमें ही करते है परन्तु आगे पीछे कोई भी नही करते है तो हे मित्र भावनास प्रतिबद्ध ऐसा परम पर्युषणा
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