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वृत्तिकार महाराजके विरुद्धार्थमें अधिकमासकी गिनती निषेध करते पर भवका भय कुछ भी नही किया यह बड़ाही अफसोस है ।
और आगे जैन सिद्धान्त समाचारी की पुस्तक के पृष्ठ ९१ की पंक्ति १ल वो में पृष्ठ ९२ वें की प्रथम पंक्ति तक ऐसे लिखा है कि ( पर्युषण पर्व केवल भाद्रव मासके साथ प्रतिबन्धवाला है क्योंकि जिस किसी शास्त्र में पर्युषणापर्व का निरूपण किया है तिसमें भाद्रवमासका विशेषण के साथ ही कथन किया है परन्तु अधिक मास होवे तो श्रावण मासमें पर्युषणा करना ऐसा तो तुमारे गच्छवाले भी नही कह गये है देखो, सन्देहविषौषधी ग्रन्थमें भी भाद्रव मास ही के विशेषण करके कहा है परन्तु ऐसा नही कहा कि अधिक मात होवे तो श्रावणमास में करना ऐसा पर्युषणा पर्वके साथ विशेषण नही दिया है ) उपरके लेखकी समीक्षा करके पाठकवर्गकों दिखाता हूं कि हे सज्जन पुरुषो न्यायाभोनिधिजीके उपर का लेखको में, देखता हुं तो मेरेकों न्यायम्भोनिधिजी में मिथ्या भाषणका त्यागरूप दूजा महात्रतही नही दिखता है क्योंकि उपरके लेखमें तीन जगह प्रत्यक्ष मिथ्या भोले जीवोंको भ्रमाने के लिये उत्सूत्र भाषणरूप लिखा है सोही दिखाता हूं कि प्रथमतो (पर्यु - erred केवल भाद्रव मासके साथ प्रतिबन्धवाला है क्योंकि जिस किसी शास्त्र में पर्युषण पर्वका निरूपण किया है तिसमें भाद्रमासका विशेषणके साथही कथन किया है) यह अक्षर लिखके मासवृद्धि होते भी भाद्रपद मासप्रतिबन्ध पर्युषणा न्यायां भोनिधिजी ठहराते है सो मिथ्या है क्योंकि
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