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[ १२ ] तथा उन्होंके परिवारवालोंके उपर बरोबर न्याय युक्त अच्छी तरहसे घटता है सोही दिखाता हुं कि-देखो न्यायांशोनिधिजी तथा इन्होंके परिवारवाले और उन्होंके पक्षधारी वर्तमानिक श्रीतपगच्छके सबी महाशय-विशेष करके श्रीसमवायाङ्गजी सूत्रका पाठको पर्युषणा सम्बन्धी सब कोई लिखते हैं मुखमैं कहते हैं और उन्ही पर पूर्ण श्रद्धा रखके बड़ाही आग्रह करते हैं उस पाठमें वर्षाकालके पचास दिन जानेसैं और पिछाड़ी ७० दिन रहनेसें पर्युषणा करणा कहा है यह पाठ भावार्थः सहित आगे बहुत जगह छप गया हैं इस पर बुद्धिजन सज्जन पुरुष विचार करों कि-वर्तमानमें दो श्रावण होनेसे भाद्रपदमें पर्युषणा करने वालोंको ८० दिन होते हैं जिससे पूर्वभागका एक अङ्ग सर्वथा खुल्ला हो जाता है और दो आश्विन मास होनेसे कार्तिक तक १०० दिन होते हैं जिससे उत्तर भागका एक अङ्ग भी सर्वथा खुम्ला हो जाता है इस तरहसें न्यायांभो निधिजी आदि जो श्रीसमवायाङ्गजी सूत्रक पाठसे दो श्रावण होते भी भाद्रपद तक ५० दिने पर्युषणा और दो आश्विन होते भी कार्तिक तक पर्युषणाके पिछाड़ी ७० दिन रखना चाहनेवाले महाशयोंको श्रावण और आश्विन मास बढ़नेसे दोनों अङ्ग श्रीजिनानारूपी वल करके रहित प्रत्यक्ष बनते हैं यह तो ऐसा हुवा कि-दोनों खोईरे जोगटा मुद्रा और आदेश-किं वा-कोई एक संसारिक गृहस्थाश्रम छोड़के साधु हुवा परन्तु साधुकी क्रिया न करसका और पीछा गृहस्थ भी न हो सका उसीको उभय भ्रष्ट याने न साधु और न गृहस्थ ऐसे को 'यतो
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