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________________ [ १६४ ] भोनिधिजी निषेध करते हैं सो निःकेवल शास्त्र - विरुद्ध उत्सूत्र भाषण करके भोले जीवोंको कदाग्रहका रस्ता दिखाया हैं । आगे छठा और भी सुनिये शुद्धसमाचारी कारके सत्य वाक्यको निषेध करनेके लिये अपना पक्षपातके जोरसें श्री आत्मारामजीनें (तुमने अपने गच्छका मनन दिखाके अपनेही गच्छका प्रमाण पाठ दिखाया है यह तो ऐसा “हुवा कि किसी लड़केनें कहा कि मेरी माता सती है साक्षी कौन कि मेरा भाई इसवास्ते यह आपका लेख प्रमाणिक नही हो सकता है ) यह वाक्य लिखे हैं इसकी पांच तरहसें तो समीक्षा उपरमें होगई है और भी छठी तरहसें अब सुनाता हुं, कि - उपरोक्त लेखमें श्रीआत्मारामजीनें शुद्ध समाचारीकारका उपहास करनेके लिये विद्वत्ताके अभिमानसें एक लड़केका दृष्टान्त दिखाया है परन्तु शुद्ध समाचारी कारके पूर्वाचार्य श्रीजिनपतिम रिजीनें श्रीतीर्थङ्कर गणधरादि महाराजोंकी आज्ञानुसार शास्त्रोंकी मर्यादा पूर्वक सत्य वाक्य लिखा हैं इसलिये लड़केका दृष्टान्त शुद्ध समाचारी कारके उपर किञ्चिन्मात्र भी नही घट सकता है तथापि श्रीआत्मारामजीनें लिखा है सो निःकेवल वर्त्तमानिक गच्छके पक्षपातसें श्रीतीर्थङ्कर गणधरादि महाराजोंकी अवज्ञा कारक है, और जैसे ग्रीष्म ऋतुमें मध्याह्नका समयके सूर्य्यको किसीने पत्थर फेंका तो भी सूर्य्य पर न गिरते पीछा लोट - कर फेंकने वाले शिर परही आनके गिर सकता है तैसेही श्रीआत्मारामजीका न्याय हुवा अर्थात् श्रीआत्मारामजीनें लड़केका दृष्टान्त शुद्ध समाचारीकार पर दिया था परन्तु Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034484
Book TitleBruhat Paryushana Nirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManisagar
PublisherJain Sangh
Publication Year1922
Total Pages556
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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