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[ १४० ] - और भी तीनों महाशय दो भाद्रपद होने से प्रथम भाद्रपको अप्रमाण ठहरा कर छोड़ देना और दूसरे भाद्रपद में पर्युषणा करना कहते है इसपर मेरेकों वड़ाही आश्चर्य सहित खेद उत्पन्न होता है क्योंकि जैसे अन्य मतवाले जिस देवकी अनेक तरहसे अज्ञान दशाके कारणसें विटंबना बहोतसी करते है फिर उन्हीं देवकों अपने परमेश्वर मानकर पूजते भी है तैसेही इन तीनों महाशयोंने भी अज्ञानी मिथ्यात्वियोंका अनुकरण किया अर्थात् जिस अधिक मास को कालचूला मान्यकरके गिनतीमें नही लेना ऐसा सिद्धकरके फिर अनेक तरहके विकल्पोंसें अधिक मासको दूषण लगाके निंदते हुवे निषेध करते है फिर उन्हीं अधिक मासमें धर्मकार्य पर्युषणापर्व करना मंजूर कर लिया, क्योंकि तीनों महाशय अधिक मासको कालचूला कहनेसें गिनतीमें नहीं आता है ऐसा तो पर्युषणाके सम्बधमें प्रथम लिखते हैं इसपर पाठकवर्ग बुद्धिजनपुरुष निष्पक्षपातसे विचार करो कि, कालचूला उसको कहते हैं जो एक वर्षका कालके उपरमे बढ़े एक वर्ष के बारह मास स्वाभाविक होतेही हैं परन्तु जब तेरहवा मास बढ़ेगा तब उसीको कालचूलाकी ओपमा होगा नत बारहवा मासको जब तेरहवा मास को कालचूलाकी ओपमा हुई उसीकों गिनतीमें निषेधभी करदेना, और प्रमाणभी करलेना यह कैसी विद्वत्ताका न्याय हुवा जो कालचूलाको निषेध करेंगे तब तो दूसरा भाद्रपदको कालचूलाकी ओपमा होती है उसी में पर्युषणापर्व स्थापना नहीं बनेगा, और जो दूसरे भाद्रपदमे कालचूला जानके भी पर्युषणा स्थापेंगे तबतो दो श्रावण होनेसे दूसरे श्रावणको
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