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[ १११ ] आषाढ़ चौमासीसे अभिवर्द्धितमें वीशदिन तथा चन्द्रमें पचास दिन तक गृहस्थी लोगोंके न जानी हुई अनिश्चय और वीश तथा पचासके उपर जानी हुई निश्चय यावत् कार्तिक तकका लिखा है और श्रीकल्पसूत्रकी अनेक टीका
में पाँच पाँच दिनकी वृद्धिसै पंचासदिन तक न जानी हुई पर्युषणा परन्तु पचाश दिने वार्षिक कृत्यों करके प्रसिद्ध जानी हुई पर्युषणा चंद्र संवस्तरमें खुलासा लिखी है तैसेही अभिवर्द्धितमें वीशदिने पर्युषणा जानी हुई लिखी है इस लिये अभिवर्द्धितमें वीशदिने प्रावण शुक्लपञ्चमीको वार्षिक कृत्य सांवत्सरिक प्रतिक्रमणादि करने से गृहस्थी लोगों को पर्युषणाकी मालुम होती थी और चंद्रमें पचासदिने भाद्रपद शुक्लपञ्चमीको वार्षिक कृत्य सांवत्सरिक प्रतिक्रमणादि करनेसे गृहस्थी लोगोंको पर्युषणाकी मालुम होती थी क्योंकि जैसे न जानी हुई पर्युषणा वीश तथा पचास दिन सक शास्त्रकारोंने खुलासा कही है तैसेही जानी हुई पर्युषणा अभिवर्द्धितमें १०० दिन और चंद्रमें 90 दिन तक ऐसा खुलासा पूर्वक लिखा हैं सो पाठ भी सब उपरमें छप गया है। .
और पर्युषणा अज्ञात तथा ज्ञात दो प्रकारकी कही है परन्तु अमुकदिने जात पर्युषणा करे तथा अमुक दिने वार्षिक करय सांवत्सरिक प्रतिक्रमणादि करे ऐसा कोई भी प्राचीन शास्त्रों में नही दिखता है इसलिये भात पर्युषणा होवे उसी दिन वार्षिकरुत्य सांवत्सरिक प्रतिक्रमण केशलंच नादि समझने क्योंकि सबी शास्त्रकारोंने गृहस्थी लोगोंको जात पर्युषणा यावत् कार्तिकमास तक खुलासा लिख
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