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________________ [ १०० ] इसलिये कुछ बिशेष अशुद्धता होवे तो दूसरी शुद्ध पुस्तक से उपरोक्त दोनों पाठका मिलान करके वाँचमा अब उपरोक्त दोनुं पाठका संक्षिप्त भावार्थ: सुनो- वर्षाकालके लिये एक क्षेत्र में प्रवेश करना ठहरना सो कितना काल तक सोही कहते हैं आषाढ़ पूर्णिमासे लेकर उत्सर्गसे पर्युषणा करे अथवा प्रवेश करे सो यावत् कार्तिक पूर्णिमा तक रहे और अपवादसै मार्गशीर्ष कृष्णण दशमी तक यावत् रहे तथा फिर भी कारणयोगे दो दशरात्रि ( वीशदिन ) याने मार्गशीर्ष पूर्णिमा तक भी रहना कल्प सो प्रथम किस विधिसे प्रवेश करके पर्युषणा करे वह दिखाते हैं-जहां आषाढमासकल्प रहा होवे वहाँ अथवा अन्य क्षेत्रमें आषाढ़ पूर्णिमा के दिन चौमासी प्रतिक्रमण किये बाद प्रतिपदा ( एकम ) से लेकर पाँच दिनमें उपयोगी वस्तु ग्रहण करके पञ्चमी रात्रि याने श्रावण कृष्ण पञ्चमीको रात्रिको पर्युषणा कल्प कहके वर्षा - कालकी समाचारी को स्थापन करे, याने पर्युषणा करे, सो अधिकरण दोष न होने के कारणसे और उपद्रवादि कारणसे दूसरे स्थानमें जावेतो अवहेलना न होवे इसलिये अनिश्चय पर्युषणा करे, अधिकरण दोषोंका वर्णन संक्षेपसे पहिलेही लिखा गया है इसलिये पुनः नही लिखता हु और निश्चय पर्युषणा कब करे सो कहते हैं कि अभिव वर्ष में वोशदिने और चन्द्रवर्ष में पचाशदिने निश्चय पर्यु-. षणा करे, क्योंकि जैसे युगान्त में जब दो आषाढ़ होते हैं तब ग्रीष्म ऋतु में चेव निश्चय अधिक मास व्यतीत होजाता है इसलिये अभिवर्द्धित वर्षमें आषाढ़ चौमासी प्रतिक्रमण किये बाद प्रतिपदा वीशदिन तक अनिश्चय पर्युषणा Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034484
Book TitleBruhat Paryushana Nirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManisagar
PublisherJain Sangh
Publication Year1922
Total Pages556
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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