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. [ ४ ] दिन मेरे नगरीके लोगोंकी सम्मतीसे इन्द्रध्वजका महोत्सव होता है जिससे एक दिनमें दो कार्य के महोत्सव बनने में तकलीफ होगा इस लिये पर्युषणा छठकी करो तब आचार्यजी महाराजने कहा कि छठकी पर्युषणा करना नही कल्पे जब फिर राजाने कहा कि चौथकी करो तब आचार्य जीने कहा यह बन सकता है, युगप्रधान महाराजकी इस बातको सर्व सङ्कने भी प्रमाण किवी है इत्यादि श्रीनिशीथ चूर्णिके दशवे उद्देशे में इसी प्रकारसे पर्युषणाकी व्याख्या है सो भाद्रव मासमें करने की हैं जैसे ही मासवृद्धि होनेसे अभिवति संवत्तर (वर्ष)में श्रावण शुदी पञ्चमीकी पर्युषणा करनी ऐसा पाठ कोई भी आगममें नही मिलता है तिस कारणसे कार्तिकमास बद्ध ( आश्री ) चतुर्मासिक कृत्य करने में जैसे अधिक मास प्रमाण नही है तैसे ही भाद्रव मास प्रतिबद्ध पर्युषणा करने में भी अधिकमास प्रमाण नही है इति अधिकमासकी गिनती करनेका कदाग्रहको छोड़ोउपरका लेख अधिकमासको गिनतीमें निषेध करनेके लिये श्रीविनयविजयजीकृत श्रीसुखबोधिकात्तिके उपरोक्त पाठसे हुवा है इसी ही तरह के मतलबका लेख श्रीधर्मसागरजीने श्रीकल्पकिरणावली वृत्तिमे तथा श्रीजयविजयजीने श्रीकल्प दीपिका वृत्तिमें अपने स्वहस्ये लिखा है सो यहाँ गौरवता ग्रन्थ बढ़ जानेके भयसे नही लिखते है जिसकी इच्छा होवे सो किरणावलीके तथा दीपिकाके नवमा व्याख्यानाधिकार देख लेना इस तीनों महाशयों के लेख प्रायः एक सदृश ( तुल्य ) है जिसमें भी विशेष प्रसिद्ध सुखबोधिका होनेसे मेंने उपर लिखा है सोही भावार्थः तथा पाठ तीनो महा.
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