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धूला कही जाती हैं इन्होंकों चूलाकी ओपना देनेका यही कारण है कि सब भवअवयोंसें विशेष सोभाकारी सुन्दर उत्तम होनेसें शिखरकी अर्थात् चूलाकी ओपना शास्त्रकारोंने दिवी हैं, द्रव्यचूलारूप भव्यशरीरकों गिनती में करके प्रमाण करने योग्य हैं, द्रव्यनिक्षेपावत् अर्थात् रावण कृष्ण श्रेणिकादि अबी द्रव्य निक्षेपेमें गिने जाते हैं परन्तु जब केवल ज्ञान पावेंगें तब भाव निक्षेपेमें गिने जावेंगे तैसेही भव्यशरीर जो द्रव्यचलामें हैं सो जब साधु आदि धर्म की प्राप्ति होगा तब भावलामें गिना जावेगा । द्रव्यचूला की गिनती नही करोगे तो आगे भाव वूला में कैसे गिना जावेगा इस लिये द्रव्यचूलाकी गिनती प्रमाण करने योग्य हैं ।
और क्षेत्रचूला भी तीन प्रकार की कही हैं जिसमें प्रथम अधोलोकमें रत्नप्रभा पृथ्वीके सीमन्तनामा नरकावासा अधोलोकके उपर जो शिखररूप है उसीकों अधोलोक चूला कही जाती हैं तथा दूसरी तिर्यग् (तीरछा) लोकमें सुप्रसिद्ध जो मेरुपर्वत हैं उसीको तिर्यग् लोकचूला कहते हैं कारण कि तिर्यग लोकका प्रमाण जंवा १८०० सो योजनका हैं परन्तु मेरुपर्वत तो एक लक्ष योजनका होनेसे तिर्यगलोककों भी अतिक्रान्त ( उल्लङ्घन ) करके उंचा चला गया इस लिये तिर्यगलोकके उपर शिखररूप होनेसे मेरुपर्वतकों चला में गिना जाता हैं तथा मेरुके उपर जो ४० योजनकी चूलीका हैं सो भी मेरुके शिखररूप होनेसें चूला में गिनी जाती हैं और मेरुके चार वनोंमें १६ तथा १ चूलीकाका मिलके ११ मन्दिरोंमें २०४० श्रीजिनेश्वर भगवान् की शाश्वती प्रतिमाजी हैं इसलिये क्षेत्रचूलाका प्रमाण एक अंशमात्र भी
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