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सुन्दरजी कृत श्रीसमाचारी शतकमें २१ और श्रीपाश्चन्द्र गच्छके श्रीब्रह्मर्षिजी कृत श्रीदशाश्रुतम्कन्ध सूत्रको वृत्तिमें २२ इत्यादि अनेक शास्त्रों में अधिकमासको गिनती में प्रमाण किया हैं. इसलिये जिनाज्ञाके आराधक आत्मार्थी पुरुष अधिकमासकी गिनती कदापि निषेध नहीं कर सकते हैं इस जगह भव्य जीवोंको निःसन्देह होनेके वास्ते थोड़ेसे अधिकमास की गिनतीके विषयवाले पाठ लिख दिखाता हु -
श्री तपगच्छके पूर्वज कहलाते श्रीनेमिचन्द्र सूरिजी महाराज कृत श्रीप्रवचनसारोद्वार मूलसूत्र गुजराती भाषा सहित मुंबईवाले श्रावक भीमसिंह माणककी तरफ से श्रीप्रकरण रत्नाकरके तीसरे भाग में छपके प्रसिद्ध हुवा हैं जिसके पृष्ठ ३६४ सें ३६५ तक नीचे मुजब भाषा सहित पाठ जानो--- अवतरणः: -- मासाण पञ्चभेयत्ति एटले मासना पांचभेदोन एकसोने एकतालीसमुंद्वार कहे छे । पंचसुत्ते, नरकत्ते चंदीओय रिउमासो ॥ भिवढिओ तहय पंचमओ ॥९०४॥
मूल:- मासाय
इच्बोविये अवरो,
अर्थः- सूत्र जे श्रीअरिहंत परमात्मानं प्रवचन तेने विषे मास पांच कह्या छे । तेमा प्रथमजे नक्षत्रनी गणनाये थाय तेनी रीतकहे छे:- चंद्रमा चारके० संचरतो जेटले काले अभिजितादिकथी विचरतो उतराषाढ़ा नक्षत्र सुधी जाय तेने प्रथम नक्षत्र मास कहिये । बीजो चंदिओयके० चंद्रथकीथाय ते अंधारा पड़वाथकी आरंभीने अजवाली पूर्णिमा सुधी चंद्रमास केहेवाये । त्रीजोरिओके० ऋतु ते लोक रूढ़िये साठ अहोरात्रीये ऋतु कहिये । तेनो अर्द्धमास एटले त्रीस अहो
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