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सुजबही जाननी हो भाद्र पदकी पर्युषणा मासष्टद्विके अभाव से चन्द्रसंवत्सर संबंधिनी जानती । और मासवृद्धि होनेसे अभिवर्द्धित संवत्सर में तो आषाढ़चोमासीसे बीस दिन करके याने श्रावण शुक्ल पंचमी को गृहस्थी लोगोंकी जानी हुई पर्यषणा करनेमें आती थी सो तो जैन सिद्धान्त का टिप्पणानुसार युगके मध्य में पौषमास और युगके अन्तमें आषाढ़ मास की वृद्धि होती थी परन्तु और किसी भी मासको वृद्धिका अभाव था। वोटिप्पणा तो अभी इस काल में अच्छी तरह से देखने में नहीं आता है इसलिये मासवृद्धि हो तो भी ५० दिनों पर्युषणा करनी योग्य है इस तरहसे वृद्धाचार्य कहते हैं अर्थात् मासवृद्धि होने से जैनपंचांगानुसार बीस दिने श्रावणमे पर्युषणा करमेमें आती थी परन्तु जैमपंचांगके अभाव से लौकिक पंचांगानुसार नासवृद्धि दो श्रावण अथवा दो भाद्रपद होतो भी उसीकी गिनती पूर्वक ५० दिने दूसरे श्रावणमें अथवा प्रथम भाद्रपद में पर्यु - षणा करनेकी प्राचीनाचायों की आज्ञा है इसी ही कारणसे श्रीलक्ष्मीवल्लभ गणिजीने अधिमासको गिनती पूर्वक ५० दिन पर्युषणा करने का खुलासा लिखा है । उसी मुजब अतामार्थियोंको पक्षपात छोड़कर वर्तना चाहिये ।
और श्रीधर्मसागरजी श्रीजय विजयजी श्री विनय विजयजी इन तीनों महाशयोंके बनाये (श्रीकल्पकिरणावली श्रीकल्प दीपिका श्रीसुखबोधिका इन तीनों वृत्तियांके) पर्युषणा 'सम्बन्धी पाठ ऊपर में लिखे हैं उमीमें इन तीनों महाशयेांने, ज्ञात याने गृहस्थी लोगों की जानी हुई पर्युषणा दो प्रकारकी लिखी है और अभिवर्द्धित संवत्सर में आषाढ चीमा
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