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[९६) यहांपर फिरसे ज्यादे विशेष लिखनेकी कोई जरूरत नहीं हैं।
२४-अब सत्यप्रिय पाठकगणसे हमारा इतनाही कहनाहै,कि-महानिशीथसूत्रके उपधान चैत्यवंदनसंबंधी इरियावहीके अधूरे पाठसे,तथा दशवैकालिककी टीकाके साधुओंके स्वाध्याय करनेसंबंधी इरि. यावहीके अधूरे पाठसे,श्रीहरिभद्रसूरिजीमहाराजके अभिप्राय विरुद्ध होकर सामायिक प्रथम इरियावही पीछे करेमिभंते स्थापन करतेहैं,और इन्हीं महाराजने जिनाशानुसारही प्रथम करेमिभंते पीछे इरियावही खुलासा पूर्वक आवश्यकसूत्रकी बडी टीकामें लिखा है, उसको निषेध करतेहैं,या उसपर अविश्वासलाकर कुयुक्तियोंसे भो. लेंजीवोंकोभी उस बातपर शंकाशील बनातेहैं, वो लोग जिनाज्ञा वि. रूद्धहोकर उत्सूत्रप्ररूपणाकरतेहुए अपने सम्यक्त्वकोमालिन करतेहैं. २५-और किसीभी प्राचीन पूर्वाचार्यमहाराजनेअपने बनाये किसी भी ग्रंथमें, किसी जगहभी ९ वे सामायिकवतसंबंधी प्रथम इरियावही पीछे करेमिभते नहींलिखा.मगर खास तपगच्छादि सर्व गच्छोके सर्वपूर्वीचार्याने प्रथम करेमिभंते पीछे इरियावही स्पष्ट खुलासा पूर्वक लिखा है, इसलिये इस बात में पाठांतरसे पहिले इरियावहीभी नहीं कह सकते, जिसपरभी पाठांतरके नामले पहिले इरियावही स्थापन करे सो भी शास्त्रविरुद्ध होनेसे प्रत्यक्ष मिथ्या है. . २६- और कितनेक अज्ञानी लोग अपनी मति कल्पनासे कहा से हैं, कि-पहिले इरियावही करें तो क्या, और पीछे करें तो भी क्या, किसी तरहसे सामायिक तो करनाहै,ऐसा मिश्र भाषण करने वालेभी सर्वथा शास्त्रविरुद्ध प्ररूपणा करते हैं, उन लोगोंको सामायिक प्रथम करेमिभंते कहनेसंबंधी शास्त्रकारोंके गंभीर अभिप्राय. को समझमें नहीं आया मालूम होताहै, नहीं तो ऐसा शास्त्रविरुद्ध मिश्र भाषण कभी नहीं करते. क्योकि देखो-सर्व शास्त्रोमे स्वाध्याय, ध्यान,प्रतिक्रमण,पौषधादिधर्मकार्यों में पहिले इरियावही कहाहै,और सामायिकम करेमिभंते पहिले कहे बाद पीछे से इरियावही करनेका कहा है, सो इसमें गुरुगम्यताका अतीव गंभीरार्थवाला कुछभी रहस्य होना चाहिये, नहीं तो सर्व शास्त्रों में महान् शासन प्रभावक श्री हरिमद्रमूरिजी, नवांगीवृत्तिकार अभयदेवसूरिजी, कलिकाल स. वंशविरुदधारक हेमचंद्राचार्यजीआदिगीतार्थमहाराज प्रथम करेमिः भंते पीछे इरियावही कभी नहीं लिखते. इसलिये इनमहाराजोंके गं. भीरआशयको समझेबिना इनसे विरुद्ध प्ररूपणा करना बडी भूलहै.
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