________________
[८५] दोनों किताबोंकी उत्सूत्र प्ररूपणासंबंधी १२ भूलेतो विज्ञापन नं ७में दिखलादी हैं, और भी बहुत हैं सो सभामें विशेष खुलासा होगा. और वे विज्ञापन का तो पहिले कुछभी उत्तर आपने नहीं दिया.औ. र नवमेका देनेलगे, यह भी आपका अन्याय है, और सभा निर्णय होनेवाला है, जिसपरभी आप अभी किताब द्वारा जवाब मांगते हैं, इससे साबित होताहै, कि शास्त्रार्थ करनेकी आपकी इच्छा नहीं है, अन्यथा ऐसा क्यों लिखते, यदि हो तो कब विचार है, सो लिखो आपकी तीसरी पुस्तककाभी उत्तर उस समय सभामें मिलजावेगा मगर दोनों किताबों में जैसी उत्सूत्रता भरी है, वैसी तीसरीमेंभी होगा,तो सभामें सिद्धकरके बतलाना मुश्किलहोगा और उसकीआलो. यणा लेनीपडेगी.अधिकमहीनेके दिनोकी गिनती,व आषाढचौमासी. से ५० वें दिन दूसरे श्रावणमे या प्रथम भाद्रपदमें पर्युषणापर्व कर. ना.तथा श्रीवीरप्रभुके ६ कल्याणक मान्यकरने और श्रावकके सामायिक प्रथम करेमिभंतेका उच्चारण किये बाद पीछेसे इरियावहीकरना शास्त्रानुसार होनसे इनबातोंको कोईभी निषेद्धनहीं करसकता.
विशेष सूचना-गये चौमासेमें हमने सब मुनिमहाराजोंको प. र्युषणापर्वका निर्णयकरनेकी सभा करनेकेलिये विनतीपत्रसे आमंत्रण भेजाथा.तथा श्रीकच्छीजैन एसोसियन सभा'नेभी सब मुनिमहाराजोको सभा भरकर वर्षावर्षके अधिकमाससंबंधी इस विवादके नि. र्णय करनेकी विनती कीथी, जिसपरभी कोई सभा करनेको न आये. सबने चुप लगादी. अब आप लोगभी चौमासा वगैरहके बहाने ब. तलाकर सभा न करोगा, तो फिर आपकीभी हार समझी जावेगी. तथा आपके पक्षके सब मुनियोंकीभी सत्यताकी परीक्षा दुनिया स्व. यंकर लेवेगी. और सभा करनेका मंजूर किये बिना व्यर्थ निष्प्रयोजनके विषयांतरकेवितंडावादवाले लंबे चौडे किसीकेभी लेखका उत्तर आजसे नहीं दिया जावेगा. संवत् १९७५ आषाढ वदी ३ गुरुवार, हस्ताक्षर-मुनि-मणिसागर, मुंबई.
देखिये-ऊपर मुजब विज्ञापन छपवाकर जाहिर कियाथा,तोभी न्यायरत्नजीने शास्त्रार्थ करनेको सभामे आनेका मंजूर किया नहीं. विज्ञापन,७वेमें लिखेप्रमाणे,अपनी १२भूलोको सुघारकर उसका प्रा. यश्चित्तभीलियानहीं,तथा अनुक्रमसे उनभूलोकोशास्त्रप्रमाणोसेसाबि तकरके सत्य ठहरासकेभीनहीं और हमनेशास्त्रानुसारसस्यरबाते बतलायाथा उन्होंको अंगीकारभी किया नही और अपने पकडेहुए झूठे
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com