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विचारों की सुंदर पद्धति का स्वीकार करना चाहिये । स्वमान्तर में भी जड़वादियों के जड़वाद में लुब्ध नहीं होना चाहिये । वीरप्रभु के. यथार्थ वचनों पर श्रद्धा रखना, वैराग्य वासित अन्त:करणयुक्त होकर राग, द्वेष, क्रोध, मान, माया लोभ, ईर्ष्या, अज्ञान, विषय और विकारादिक का जहाँ तक हो सके शीघ्र त्याग करना चाहिये । परोपकार को स्वोपकार मानना चाहिये । बस, यही आत्मोन्नति का सीधा और सरल मार्ग है । इस वास्ते उस मार्ग का अवलंबन करके जगत् के जीव, आत्मोन्नति की साधना करें, यही अन्तःकरण से इच्छा करके इस निबंध की पूर्णाहुति की जाती है। .
समाप्त
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