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( ३४ ) १ प्राणातिपातविहमण व्रत, २ मृषावादविरमण व्रत, ३ अदत्तादानविरमण व्रत, ४ मैथुनविरमण व्रत, और ५ परिग्रहविरमण ब्रत । इन पांचों नियमों में ही समस्त नियमों का समावेश होजाता है। ये नियम समस्त आस्तिक मात्रको अनुकूल हैं। अर्थात् इन नियमों में सभी आस्तिक सहमत हैं । क्योंकि श्रीहरिभद्रमूरि का वचन है।
पञ्चैतानि पवित्राणि सर्वेषां धमचारिणाम् ।
अहिंसा सत्यमस्तेयं त्यागो मेथुनवर्जनम् ।। ये पांच वस्तुएं सब धर्मवालोंने पवित्र मानी हैं। १ अहिंसा, २ सत्य, ३ अदत्त वस्तु का त्याग, ४ त्याग (मूर्छारहितपना ) और ५ ब्रह्मचर्य का पालन ।
इन पांचों नियमों को प्रत्येक मतानुयायी किस प्रकार मान्य रखता है, इस विषय में यत्किचित् स्पष्टतया विचारें।
प्रादुर्भागवतास्तत्र व्रतोपव्रतपञ्चकम् । यमांश्च नियमान् पाशुपता धर्मान् दशाभ्युधुः ॥१॥ अहिंसा सत्यवचनमस्तैन्यं चाप्यकल्पना । ब्रह्मचर्य तथाऽक्रोधो ह्यार्जवं शौचमेव च ॥ २ ॥ संतोषो गुरुशुश्रुषा इत्येते दश कीर्तिताः।। निगद्यन्ते यमाः सांख्यैरपि व्यासानुसारिभिः॥३॥
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