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समर्पण.
प्रिय सरदार,
तुम्हारी ही सरदारी में खेले कूदे, तुम्हारी ही गाडी में सैरें कीं, तुम्हारे ही साथ मिठाईयां उढाई, और तुम्हारे ही साथ अध्ययन किया । इन स्मृतियों के उपलक्ष में, मेरा यह प्राथमिक प्रयास तुम्हीं को समर्पण करता हूं ।
मैं हूं तुम्हारा -अभी शिवपुरी में उड़ता भंवर.
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