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। ५०% ग्राम नगरके काश्यप गौसके सिद्धार्थराजाकी बासीट गौत्रकी त्रिशलाराणीको कुक्षिमें बाधा रहित भक्तिपूर्वक देवशक्तीस स्थापित किये उसी समयमभी भगवान्को तीन ज्ञानये इसलिये देवानन्दा माताकी कुक्षिसे संहरण होकरके मेरा त्रिशला माताकी कुक्षिमें आना होगा ऐसा नामतेथे परन्तु उसी समयको अल्पकालके कारणसे नहीं जान सके और त्रिशलामाताकी कुतिमें आये बाद फिर जान लिया
यहां पाठकवर्गसे मेरा यही कहना है कि उपरके श्रीकल्पसूत्रके मूलपाठकी नौ (९) टीकाओं में ही उपरके भावार्थ वाली ही विस्तारपूर्वक व्याख्या है परन्तु सबके पाठ इहाँ लिखने से बहुत विस्तार होजावे तथा कितनीही टीकायेतो हरव श्रीपर्युषणपर्वमें गांव गाँवमें बांधने में मातीशी है इसलिये उन्होंके पाठ और भावार्थ प्रसिद्ध होनेसे यहां नहीं लिखता हूं और उपर मुजबही खास विनय विजय जीने ही अपनी बनाई मुबोधिकातिमें भी विस्तारसे व्याख्या करी है जिसमें ब्राह्मण कुलमें देवामन्दामाताकी कुक्षिसे क्षत्रिय कुलमें त्रिशला माताकी कुक्षि मानेकी व्याख्या करते १ झोक विशेष करके कहा है उसीकोही यहां दिखाता हूं यथासिद्धार्थ पार्थिव कुलास गृहप्रवेश, मोहरी भागमयमान इवक्षण यः । राविर्दिवान्युषितवान् वृणीति লিলাগা বিভব ও অলী জিলা তুলার ॥
इस झोकका मतलब ऐसा है कि भगवान् भव्य जीवों के उपकारके लिये मानो सिद्धार्थ राजाके उत्तम कुड में प्रवेश करनेके लिये अच्छा मुहूर्त देखने के लिये ८२ दिवसतक अष
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