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________________ [ 20 ] कहना पड़ता है कि - मिथिलानगरी में कुम्भ राजाकी प्रभावती रानीको कूक्षिमें १९ वें भगवान श्रीमलानाथ स्वामी स्त्रीपने में आकर उत्पन्न हुए सो भी आश्चर्थ रूप हुआ उसमें तो नमोत्थुणं वगैरह आप लोग भी मानते हों तो फिर श्री वीर प्रभुके गर्भ हरण दूसरे च्यवन कल्याणक रूप आश्चर्य में नमोत्थुणं नहीं मानना यह तो प्रत्यक्ष अन्याय आत्मार्थियोंको नहीं करना चाहिये अर्थात श्री मल्लोनाथजी के स्त्रोपने में उत्पन्न होंने रुप आश्चर्यमें जैसे नमोत्थु णं मानते हों बैसे हां श्रीवीर प्रभुके दूसरे च्यवन रूप आश्चर्य में भी नमोत्थूण मानना न्यायानुसार आत्मार्थियों को उचित है । और जब श्री ऋषभादि २३ तीर्थंकर महाराजोंने गणधर पूर्वधरादि पूर्णचार्यों ने आगमादि अनेक शास्त्रों में गर्भापहार' रूप दूसरे च्यवनको कल्याणकपने में गिन कर वीरप्रभुके छ कल्याणकोंको खुलासा व्याख्या करी है उससे ही उसमें नमोत्यु तथा तीन जगतमें उद्योत और संसारी सब जीव को सुखकी प्राप्ति वगैरह तो स्वयं सिद्ध ही है इस लिये इस बातमें शङ्का रखना अपने सभ्य कल्पको मलिनताका कारण है आत्मार्थियों को करना उचित नहीं है । और “जबलु एयंभूयं णभब्बं णभविस्सं जरायां अरिहन्ता वा चक्कवहीवा बलदेवा वा बासुदेवावा अंतकुले सुवा इत्यादि श्री कल्पसूत्र के मूल पाठके और उसको अनेक व्याख्यायोंके अनुसार भगवान् कुलमदके कारणसे ऋषभदत्त ब्राह्मण के घर में देवानन्दा ब्राह्मणिकी कूक्षिमें आकर उत्पन्न हुए उसको आश्चर्य कहा है सो उस आश्चर्यमें आप लोग नमोत्य णं वगैरह होने का मानते हो इसलिये आश्चर्यमें नमुत्थुण वगैरह होनेका कैसे सम्भवे ऐसी शङ्का करना व्यर्थ है कहना ही व्यर्थ है इस बासको विवेकी जन स्वयं विचार सकते हैं । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034474
Book TitleAth Shatkalyanak Nirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages380
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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