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बातें लिखनेके समय उसीमें निश्चय नय करके अल्प बातकी भिन्नता होवे उसीको नहीं लिखते हैं इसलिये बहुत अपेक्षा संबंधी व्यवहार नयकी बातको पकड़ करके कदाग्रहसे अन्य शास्त्रोम अल्प सिन्नता वाली निश्चय नयकी बातको खुलासे लिखी होते भी उसीका निषेध करनेसे उत्सूत्र भाषणरूप मिथ्यात्वके दूषणकी प्राप्ति होती है, जैसे कि नीतीर्थंकर भगवानकी माता प्रथम स्वप्नमें हस्थी देखे १,पुरुष तीर्थंकर होवे २, श्रीतीर्थंकर महाराजका ९ मास और ॥ दिने जन्म होवे ३, मनुष्य गतिसे फिर मनुष्य होकर चक्रवर्ती नहीं होवे ४, तथा चक्रवर्तीसे तीर्थंकर के सिवाय अधिक बल अन्य मनुष्यमै नहीं होवे ५, दीक्षा समय तीर्थंकर महाराज पांच मुष्ठी लोच करे ६,पांच सौ धनुष्यके शरीरवाले दोमुनिओंसे अधिक १ समयमें मोक्ष नहीं जावे , श्रीतीर्थकर महाराजके केवल ज्ञानकी प्राप्तिके समय प्रथम देशनाम चतुर्विध संघकी स्थापना होवे ८, तथा सुमेरु कदापि चलायमान नहीं होवे , और पर्याप्ता अपर्याप्ता एकेन्द्रिय जीव मिथ्यात्वी होवे १० इत्यादि अनेक बातें बहुत अपेक्षा संबंधी व्यवहार नयसे शास्त्रकारों ने लिखी हैं परन्तु श्रीमहावीर स्वामीकी माताने प्रथम स्वप्नमें सिंहको देखा तथा श्रीआदिनाथस्वामिकी माताने प्रथम स्वप्ने उषाको देखा १, श्रीमल्लीनाथजी स्त्री पने तीर्थंकर हुए २, बारहवे भगवान्का ८ भास और २० दिने तपासातवें भगवान्का मास और १९ दिने जन्म हुआ ३,श्रीवीर प्रभुका जीव २२ वेसवे मनुष्य होकर फिर २३ वें भवे महाविदेह क्षेत्र मनुष्यपनमें चक्रवर्ति हुआ ४,श्रीबाहुबलनीमें भरत चक्रवर्तिसे
अधिक बल हुआ ५, श्रीआदिनाथ स्वामिजीने दीक्षा समय Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
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