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________________ (७६) गणन्ते अणुत्तरे निव्वाधाए गिरावरणे कसिणे परिपुत्र केवल वर जाणदंसोसमुपके ॥५॥ साइणा परिमिव्वुडे भयवमिति ॥६॥" अत्र यत्तदोमित्योक्तसम्बन्धात् यत्रासौस्वामि दशम देवलोकात् पुष्पोत्तर प्रवर विमानाद्देवानन्दा कुक्षाववातरदिति । तेणन्ति, तस्मिन्, णमितिवाक्यालङ्कारे, कालेवर्तमाना वसर्पिणाश्चतुर्थार कलक्षणे, णङ्कारपूर्ववत् । अथवाऽर्षत्वात् सप्तम्यर्थे तृतीयामधिकृत्य, तेणं कालेणन्ति तस्मिन् काले, तेणं समयेणन्ति, तस्मिन् समये। परंसमयोजीर्णशाटकस्फालन दृष्टान्तेन प्रागुक्त कालान्तर्गत एव परमनिकृष्टं कालविशेषः यद्वा हेतो तृतीया ततश्च पूर्वन्यायादेव-यौकालसमयौ श्रीऋषभादिजिनैः॥ श्रीवीरस्यषणां यवनादीनां वस्तूनां हेतु तया प्रतिपादितौ न च च्यवनादीनां कल्याणकत्वेन व्याख्यात मनागमिकं चूगर्यादिषु तथैव व्याख्या नात् ॥ यतः॥ जो भगवता उसभ सामिणा सेसतित्थमरेहिय भगवतो वढमाण सामिणो चवणादीणं छरहंवत्थुणं कालोणातो दिठोवागरहोम, तेण कालेणं तेण समयेणन्ति, इति पर्युषणा कल्पचूणों ] ऊपरके लेखकी समीक्षा करके पाठकगणको दिखाता हूं, हे सज्जन पुरुषों प्रथम तो धर्मसागरजीने साम्प्रत वर्तमानकाल तीर्थके नायक भीवर्द्धमान प्रभुको नजीक उपकारी जान कर श्रीभद्रबाहु स्वामीजीने जघन्य मध्यम उत्कृष्ट वाचना पूर्वक मीवीर भगवान्का चरित्र कथन करनेका लिखा सो मूल सूत्र में तो सूत्रकार महाराजने 'पञ्च हत्थुत्तरे' 'साणापरिनिव्वुडे, ऐसा करके च्यवनगर्भापहार जन्मादि छहों कल्याणकोंका कथन किया हुआ है तिसपर भी इसीही मूल पाठकी व्याख्या करते हुए धर्मसागरजीने "पंचकल्याणक निबन्ध बन्धुरं पीवीरचरित्रं" ऐसा रिसकर च्यवन नामादि पांच कल्याणकोवाला पीवीर Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034474
Book TitleAth Shatkalyanak Nirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages380
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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