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[ ४५४ कल्याणकों संबंधी संक्षिप्से इसजगह लिखके दिखाताहूं जिसमें प्रथमतो इसीहीग्रन्थके पृष्ठ २४१ वेमें न्यायरत्नजीको तरफके (श्रीवीरप्रभुके कल्यणकोंके) लेख संबंधी जो सपना करीथी जिसका निर्णय यहां दिखाताहूं सो न्यायरत्न वि. द्यासागरकाविशेषणको धारणकरनेवाले पोशांतिविजयजीने अपलेगच्छ का पक्षपातसे शास्त्रकारों के विरुद्धार्थ में सन १९०८ के सप्टेम्बरमासकी७ वी तारीख वोरसंवत् २४३४ आश्विनशुदी २ का जैनपत्रके २४ वा अंकके चौथेपृष्ठ में कल्याणक संबं. धी जो लेख लिखा है सो मीचेमुजब जानो:
[पंचाशक सूत्रके मूलपाठमें पांच कल्याणक तीर्थंकर महावीर स्वामीके फरमाये है, पंचाशक सूत्र पूर्वधारी हरि भद्रसरिजीका बनाया हुवा है और अभयदेव-सरिजीने उसपर टीका किइ है खरतर गछवालोंको पुछना चाहिये, गापहारको अगर कल्याणिक मानते हो अछेरा किसको मानते हो ? दश अछेरेमें गर्मापहारको एकतरहका अछेरा कहा फिर कल्याणक कैसे हो सकता है:-पांच कल्याणककी सबुतीका पाठ पंचाशक सूत्रका नीचे मुजय है।
आसाढ सुद्धछठी-चेतेतहसुद्धतेरसीचेव, मगसिरकिन्हेदसमी वइसाहेसुद्ध दसमीय, कत्तियकिन्ह चरिमा-गमाइदिणा जहक्कमएते, हथ्थु तर जाएणं-चउरोतहसातिणाचरिमा ॥ यहपाठपूर्वधारी आचार्यमहाराज हरिभद्रसूरिजीका फरमाया हुवा है। अब अभयदेव स रिजीकी फरमाई हुइ टीक का पाठ सुनिये ( व्याख्या ) भाषाढमासे शक्लपक्षस्य षष्टि तिथिरेक दिनंएव चैत्रमासेतथेति समुच्चये शुक्ल त्रयोदश्येवेति द्वितीयं, चेत्य वधारणे-तथा मार्गशीर्षकृष्ण दशमीति-तृतीShree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
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