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धिकारे पहिले करे मिभन्ते पीछे इरियावही, और भीजिनेश्वर सूरिजी से खरतर विरुदकी उत्पत्ति, और श्रीनवाङ्गी वृत्तिकारक श्रीअभयदेवसूरिजी श्रीजिनवल्लभसूरिजी, श्री जिनदत्तसूरिजी वगैरह शासन प्रभावकाचार्य्यं श्रीखरंतरगच्छ में हुए इत्यादि बहुत सत्य बातें मान्यकरी थी और अपने अपने बनायें ग्रन्थों में खुलासा पूर्वक इन बातोंको लिखते रहे, इन्होंसे खरतर वालोंका पूर्ण प्रीति भाव सहित संपसे वर्ताव होता था और आपसमें एक एकको वन्दना स्तुति-गुण गान करते रहते थे, परन्तु जबसे उपरोक्त बातों में भी चैत्यवासियों का अनुकरण होने लगा, तबसे विशेष विरोध भाव बढ़ गया, जब खरतर गच्छवाले भी उपरोक्त बातोंको बड़े जोर शोर से शास्त्रप्रमाणानुसार सिद्ध करने लगे, तब तपगच्छवाले भी कितनेही कदाग्रहीजन तो चैत्यवासियोंकी तरह कुयुक्तियोंका और कदाग्रहका साहरासे अपना इष्ट स्थापन करने लगे, परन्तु नवाङ्ग वृत्ति वगैरह माने विना काम नहीं चल सकता था, इसलिये श्रीजिनेश्वर सूरिजी से खरतर विरुद निषेध करके नवाङ्गवृत्तिकारक श्री अभय देवसूरिजी को खरतर गच्छकी परम्परासे अलग करनेका परिश्रम करने लगे, और कालान्तर में चैत्यवासियोंकी और अपने गच्छ के कदाग्रहियों की अन्धपरम्परा में पड़कर श्री अनन्त तीर्थहूर गणधरादि महाराजोंकी आज्ञा उत्थापनसे संसार बढ़नेके भयको छोड़कर अपने पूर्वाचार्यो के कथनको भी उन्मूलन करके - धर्मसागर जीने-षट् कल्याणक, अधिकमास, दूसरे श्रावणमें तथा प्रथमभाद्र में पर्युषणा, सामायिक में प्रथम करेमिभन्ते, भोजिनेश्वर सूरिजी से खरतर विरुद वगैरह शास्त्रानुसार आज्ञामुजब सत्य बातोंको निषेध करनेके लिये और उत्सूत्रोंसे तथा कुयुक्तियों से इन वालोंके विरुद्ध प्रत्यक्ष मिथ्या झूठी वार्ताको
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