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[ ७२७ ] नहीं क्योंकि इन उपरोक्त बातोंका पूरा स्पष्ट खलासे निश्चयके साथ निर्णय तो श्रीज्ञानीजी महाराजके सिवाय और कोई भी नहीं कर सकता इसलिये १०७७ के मृत्युके इतिहासिक लेखको आगे करके अनेक शास्त्रों में और तप गच्छके ही पूर्वजोंने अपने ग्रन्थों में श्रीजिनेश्वर मूरिजीसे खरतर गच्छ, और श्रीनवांगी वृत्तिकारक श्रीअभयदेव मूरिजी तथा श्रीजिनवल्लभ सूरिजी श्रीजिनदत्तसूरिजी वगैरह पूर्वाचार्य खरतर गच्छमें हुए ऐसा लिखा है इसको झूठा ठहरानेका उद्यम करना सो अभिनिवेशिक मिथ्यात्वका ही कारण मालूम होता है अन्यथा कदापि ऐसा एकान्त हठवादका साहस न होता खैर;
और नवीन या पुरानी जीर्ण पुस्तकोंका उतारा करने में बहुत भूलें भी हो जाती हैं इसलिये अक्षर और अंकोंका नम्बर लिखने में दृष्टि दोषसे यदि दर्लभ राजाकी मृत्यु १०८७ में हुई होवे उसके लिखनेकी जगहपर भूलसे १०८७ के १०७७ लिखे गये होवे उसमें ८ का ७ बन गया होवे तो भी ज्ञानी जाने। अथवा १०७० या १०७४ में दुर्लभ राजाने श्रीजिनेश्वर सूरिजीको खरतर विरुद दिया होवे उसके लिखनेकी जगहमें भी 9 की जगह
लिंखा गया होवे उसमें १०७०। बदसे १०८० बन गये होवे या २०७४ की जगह १०८४ बन गये होवे और वोही परम्परा चल पड़ी होवे तो भी श्रीज्ञानीजी महाराज जाने । परन्तु भोजिनेश्वर सूरिजीने दुर्लभ राजाकी सभामें चैत्य वासियोंका पराभव किया और संयमियोंकी विहार खुला कराया तबसे वसतिवासी सुविहित खरतर कहलाने लगे यह बात तो संवत् ११३८ में बना हुआ श्रीवीरचरित्र भीअभयदेव मूरिजीके सन्तानीय श्रीगुणचन्द्रगणिजी कृतसे, तथा दादाजी श्रीजिनदत्त मूरिजीकत ११८० के अनुमान श्रीगुरुपारतंत्रघ और भीगणधर Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
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