________________
[ ६३२ ]
कल्याण करते हुए भव्यजीवोंको सत्यबात ग्रहण कराकर संसार भ्रमण रूपी खोटी श्रद्धाकी खाडसे उद्धार करने के अनन्त लाभको प्राप्त करें, जिसमे ही: निजपरका हित है परन्तु अभिमान झूठा हटवादसे तो संसार वृद्धिके सिवाय और कुछ भी सार न मिलेगा, गुरु गच्छके कदाग्रहसे मनुष्य जन्म ढथा गमाना उचित नहीं है ।
और न्याय विशारद सुप्रसिद्ध महोपाध्याय श्रीयशोविजयजीने श्रीसीमंधरस्वामीजीके स्तवन में “जिमजिम बहुश्रुत बहुजन संम्मत, बहु शिष्ये परिवरियो ॥ तिमतिम जिन शासन नो वरी । ते नवी बुये तरियो” इस गाथाको जो कलिजुगकी व्यवस्था देखकरके कही है सो तो न्यायांभो निधिजीने पर्युषणा तथा सामायिक और कल्याणकादि विषयोंमें उत्सूत्र भाषणोंके संग्रहसे और कुयुक्तियोंके विकल्पोसे ढक मतके त्यागी वैरागी सत्योपदेशक बाह्य आडम्बर के भरोसे भोले जीवोंको श्री जिनाताकी विराधनके रस्ते चलाने के कर्तव्योंसे प्रत्यक्ष प्रमाणता युक्त सत्य करके दिखाई है परन्तु अब आत्मार्थियों को उत्सूत्र प्ररूपणाकी बातोंकों त्याग करके श्रीजिनाज्ञा मूजिब शास्त्र प्रमाण युक्त इस ग्रन्थमें कथन करी हुई सत्य बातोंको शीघ्रतासे ग्रहण करके अपनी शुद्ध श्रद्धा पूर्वक आत्म कल्याणके कार्यका उद्यम सफल होवे ऐसा करना चाहिये ।
और " आगमोक्तः षष्ट कल्याणकः" ऐसे अक्षर प्रत्यक्षपने खुलासा पूर्वक उपरोक्त पाठमें होनेपर भी " स्कंधा स्फालनपूर्वक साधितः” तथा “ योनशेषसूरीणामज्ञात सिद्धांत रहस्यानां” इत्यादि इन दोनों पंक्तियोंके भावार्थको और चैत्यबासियों सम्बन्धी पूर्वापर के बिषय सम्बन्ध को ( विवेक बुद्धी से समझे बिना या अभिनिवेशिकको मायाचारीसे ) छोड़करके
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com