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[६१३ ] से ५७३ तक खुलासापूर्वक निर्णय छप गया है उसको बाचमेसे आपका सब भ्रम मिट जावेगा।
और फिर भी हमको दृढ़ करनेके वास्ते गणधर साई. शतकको वृहदवृत्तिका पाठ आपमे लिख दिखाया है सो हमतो हमारे पूर्वजोंके कपन करे हुए उक्त ग्रंथके पाठोंके तात्पर्याों को समझकर शास्त्र प्रमाणानुसार प्रत्यक्षपने भागों में कथन करी हुई छ कल्याणकोंकी सत्य बात पर सदा दूढ़ है उससे उपरोक पाठोंने तथा छ कल्याणकोंके मानने में किसी तरहका सन्देह नहीं है परन्तु आप लोगोंने उपरोक पाठोंका तात्पर्यार्थको समझे बिना अन्धपरम्पराके मिथ्या कदाग्रहका हठवादरूपी तिमिरको भ्रमखाड़में पड़कर भद्रजीवोंको भी अपनी मायाजालमें फंसानेके लिये उपरोक्त टीकाके पाठोंको शास्त्रकारों के विरुद्धार्थ होकर कल्पित मर्य लिखकर उत्सूत्र प्ररूपणाका पंचचलाते हुए प्रत्यक्ष विपरीततासे दृष्टिरागी बाल जीवोंको मिथ्यात्वके चम, गेरनेसे वृषा ही निज परके आत्म-कल्याणमें विघ्नका कारण किया है।
और उपरोक्त पाठके पूर्वापरके सम्बन्धवाले सब पाठोंको छोड़कर बिना सम्बन्धकी १ गाथा लिखकर मधूरे प्रसंगसे उलटे अर्थको करके अपनी विद्वत्ताको चातुराई बाल जोवों में चलानीपी सो चला दी किन्तु जब उपरोक पाठके पूर्वापरको गाथाओं सहित सम्बन्धपूर्वक शास्त्रकारोंके अभिप्रायको देखा जाये तब तो न्यायर्याभो. मिधिनीके विवेक शून्यताको अज्ञानताके सब परदे मुल जावे क्योंकि वहां तो उस देश, चीताडने तथा चीतारके आसपासमें सब जगहोंपर प्रायः करके पञ्चमहाव्रतीका उधारण करनेवाले रिपदधर भी पैत्यवासी होकर बैठे Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
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