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कदाचइकै पक्षपातकी कल्पित बासको प्रभाव न करके अनेक शास्त्रानुसार प्रथम करेमिभंते पीछे हरियावही श्रीधर्मसंग्रह की वृत्तिमें खुलासा पूर्वक लिखी है सो आशा आराधक आत्मार्थी पुरुषको तो शास्त्रानुसार प्रथम करेमिभंतकी सत्य बात प्रमाण होती है नतु शास्त्रप्रमाणशूग्य गुरु गच्छ कदाग्रहकी कल्पनारूपी प्रथम इरियावी, तैसेही आत्मार्थी पुरुषोंको तो श्रीहीरविजयसूरिजीने उत्सूत्र से मोवीर प्रभुके छठे कल्याणकको निषेध किया जिसको न मान्यकर श्रीशान्तिचन्द्र गणजीने शास्त्रानुसार छठे कल्याणकको लिखा उसको मान्यकरना चाहिये इसमें ही भगवान्की आशाका आराधन करना है नतु मिथ्या हठवाद में इस बातको तो विवेकीजन स्वयं विचार लेवेंगे ।
और अब सत्यग्रहणाभिलाषी आत्मार्थी सज्जनोंसे मेरा इतना ही कहना है कि भीवीर प्रभुके छठे कल्याणकको निषेध करनेके लिये राज्याभिषेकके पाठको आगे करनेवालोंकी कल्पना मुजब तो वीरप्रभुके छठे कल्याणक की ( जघन्य मध्यम उत्कृष्ट वाचना पूर्वक मास पक्ष तिथिका खुलासा और दूसरे च्यवन कल्याणक सूचक चौदहस्वप्न त्रिशला माताने आकाशसे उतरते अपने मुखमें प्रवेश करते हुए देखने वगैरह के कथनकी ) तरह श्रीऋषभदेव प्रभुके राज्याभिषेकके पाठकी भी जघन्य मध्यम उत्कृष्ट वाचना पूर्वक मास पक्ष तिथिका खुलासा और जन्म दीक्षादि कल्याणकोंके सूचक चिन्होंका कथन करनेका सूत्रकार गणधर भगवान् भूल गये होंगे अथवा राज्याभिषेककी तरह गर्भापहार सम्बन्धी चौदह स्वप्नादिकके भी मासपक्ष तिथी वगैरह दूसरे च्यवन कल्याणकके सूचक चिन्हों को न लिखते तबतो भीवीर प्रभुके छठे कल्याणकके
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