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शब्द
वालासह दोन
[६०४] पूर्ण अज्ञानताके सिवाय और क्या होगा इसकोभी विवेकी तत्वात जम स्वयं विचार लेंगे।
और अपरके पाठमें च्यवनादिकोंको वस्तु कहके कल्याणक कहे इससे भी वस्तु शब्द कल्याणक अर्थ वाला प्रत्यक्षपने सिद्ध होता है परन्तु वस्तु शब्द अनेकार्थ वाला होनेसे वस्तु शब्दका अर्थ शास्त्रकारोंके अभिप्राय मुजब संबंध पूर्वक करना चाहिये तथापि वस्तु शब्दसे कल्याणक अर्थका निषेध करनेके लिये जो एकांत हठवाद करते हैं जिन्होंको तत्वज्ञान बिनाके अज्ञानी समझने चाहिये।
और मीऋषभदेवजीका राज्याभिषेकको इन्द्र कृत्य की तरह श्रीमहावीर स्वामीके गर्भापहारकोभी इन्द्रकृत जानकर कल्याणक मानने संबंधी बीहीरविजय सूरिजीने लिखा सो तो पीवीरप्रभुके गर्भापहारको छठे कल्याणकपने में मान्य करने संबंधीशास्त्रकार महाराजोंके तात्पर्यको इन महाराजके समझा नहीं माया मालम होता है क्योंकि जो कल्यासकरवपके गुण बिनाही इन्द्रकृत्य समझकर कल्याणक माना जाता होवे तो वंशस्थापना विवाहकरना वगैरह इन्द्रकृत अनेक कार्यों को कल्याणक कहते कहते १०-१५ कल्याणक बनाने पड़ेंगे परंतु ऐसा कदापि नहीं हो सकता इसलिये राज्याभिषेक, च्यवन जन्मादिक कल्याणकत्वपनेके गुण लक्ष न होनेसे राज्याभिषेकको तो कल्याणक नहीं कह सकते परंतु श्रीमहावीर स्वामीके गर्भापहारमें तो प्रत्य. क्षपने प्रथम च्यवन कल्याणककी तरह दूसरे च्यवन कल्याणकपने सब गुण लक्षण विद्यमान हैं इसलिये भीवीर प्रभुके दो व्यवन कल्यासोर छ कल्याणक होते हैं उसी गुण निष्पन होनेरी शासन नायकके छ कल्याणक कहते है मत मिकेवल इत्य समझकरके मतएव इन्द्ररुत्य समShree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
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