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[ २ ] आचार्य महाराज भी गुरुका आदेश न कर सके केवल श्रीदेवभद्र आचार्य महाराजको गुरुका आदेश कहा कि यह मुगुरु महाराजका उपदेश होनेसे अवसर आवे तब तुमने सफल करणा इतश्च पतन नगरसे दो साधु और तीसरे आप श्रीजिन वहमणि सिद्धान्त विधि करके चित्रकूटमें विहार करते भये तिस चित्रकूट विषे चामुण्डाको प्रतिबोधकीनी और साधारण नामका आवकको परिग्रहका परिमाण कराया और श्रीमहावीरस्वामीका गर्भहरण नाम छठा कल्याणक प्रगट किया और कम करके साधारण प्रावकने श्रीपार्श्वनाथजी और श्रीमहावीरस्वामीजीके दो मन्दिर कराये। यह उपरका पाठार्थ गणधर साई शतकको लघु टीकाका हैं और जिसको शङ्का होवेसो अजमेरमें सौभाग्यमलजी ढढाके भण्डारमें प्राचीन पुस्तक है उसको देख लेवे । अब विचार कीजिए कि जब चित्रकूटमें मीमहावीरस्वामीजीका छठा कल्याणक प्रगट किया तो फिर शास्त्रके पाठ लिखके दिखाना सो ग्रन्थको भारभूत है या नहीं)
ऊपरके लेखकी समीक्षा करके सत्य ग्रहणाभिलाषी सज्जन पुरुषोंको दिखाता हूँ कि, हे सज्जन पुरुषों उपरके लेखमें आत्मारामजीने श्रीगणधर सार्द्ध शतककी लघु वृत्तिके पाठ का मतलब समझे बिनाही अज्ञानतासे या अभिनिवेशिक मिथ्यात्वसे श्रीजिनवल्लभ सूरिजी महाराजको चित्रकूटमें श्रीमहावीरस्वामीजीके गर्भापहारके छठे कल्याणकको नवीन प्रगट करनेका दूषण लगाकर नीतीर्थंकर गणधरादि महाराजोंके कथन किये हुए पीआचाराङ्गादि शास्त्रोंके पाठोंको (श्रीवीरप्रभुके छ कल्याणक सिद्ध करने सम्बन्धी लिखे उन्होंको) अबके भारभूत याने सर्वथा वथा ठहराकरके गच्छके पक्षपातके दूदाबहसे भोले जीवोंको अपनी कल्पनाके भ्रममें गेरनेसे संसार
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