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अणुव्रत-दृष्टि
स्पष्टीकरण प्रसवके समय जबकि माता और शिशु दोनोंका जीवन खतरेमें हो जाता है उस स्थितिमें नियम लागू नहीं है। . १६-मांस-जिसमें अण्डा, मांस, सत्त्व, मज्जा और रक्त भी सामिल है-न खाना।
मांसाहार भी आजके युगमें एक विवाद ग्रस्त विषय बन रहा है। मानव समाज मांसाहारी और शाकाहरी इन दो वर्गों में विभक्त है । समय २ पर अनेकों विवादपूर्ण लेख और भाषण जनताके सामने आते हैं। एक पक्ष कहता है कि मनुष्यका प्राकृतिक खाद्य मांसाहार है तो. दूसरा पक्ष विविध युक्तियों और प्रमाणोंसे यह सिद्ध कर देता है कि मनुष्य प्रकृतिसे शाकाहारी है। मनुष्य अपनी मूल प्रकृतिसे क्या है ? यह केवल युक्ति और विश्वासका विषय है जो दोनों ही पक्षोंके भिन्न हैं। प्रत्यक्षका पर्याप्त स्थान दोनोंमें ही नहीं है, अतः अपेक्षाकृत यह सोचने के कि मनुष्य अपने मूल स्वभावसे शाकाहारी है या मांसाहारी, यह सोचना अधिक निर्णायक हो सकता है कि मनुष्यको होना क्या चाहिये। इस प्रकार सोचनेसे जो भी निर्णय हमारे सामने आता है, वही इस बातका निर्णायक हो सकता है कि मनुष्य अपने मूल स्वभावसे क्या है ? यह निर्णय न भी हो तो भी कोई आपत्ति नहीं क्योंकि हमारा, ध्येय तो यही है कि आजकी विकासोन्मुख मानवताको किस
ओर जाना श्रेयस्कर है–सामिषताकी ओर या निरामिषताकी ओर । आज अधिकार-प्राप्ति का युग है। समस्त वर्ग अपने-अपने अधिकारों के लिये लड़ रहे हैं। प्रत्येक व्यक्ति यह कहता है कि मुझे स्वतन्त्रतापूर्वक जीनेका अधिकार है। आज एक वर्ग दूसरे वर्गको उसके अधिकार दिलानेमें जी जानसे योगदान करता है। पर क्या किसी वर्गने इन अगणित पशुओंकी करुण चित्कारमयी अधिकारोंकी मांग पर भी कान लगाया है। क्या उन्हें इस पृथ्वी पर जीनेका अधिकार नहीं है,
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