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अणुव्रत-दृष्टि
स्पष्टीकरण व्रत-ग्रहण से पूर्व संग्रहीत वस्त्रोंके उपयोग में नियम बाधक नहीं है। यह स्पष्टीकरण नियम नं. ३ और ४ दोनों पर लागू होता है अर्थात् विदेशी और रेशमी दोनों प्रकार के पूर्व संग्रहीत वस्त्रों के उपयोग में नियम अबाधकता बतलाता है।
रेशम में यहाँ कीड़ों से उत्पन्न होनेवाला रेशम ही ग्रहण किया गया है, उससे रेशमी कहे जानेवाले अन्य पदार्थ निष्पन्न बस्त्र नियम की परिधि में नहीं आते। ___ कुछ वस्त्र रेशमी नहीं कहे जाते फिर भी रेशम की तरह ही कीड़ों से बनते हैं। वे वस्त्र इस नियम की परिधि में आ जाते हैं, उदाहरणार्थ-मूंगा-सूता, ईरण्डी आदि।
कुछ वस्त्र मूलतः सूती होते हैं, उनके किनारोंपर कुछ एक तार रेशमी होते हैं, वे वस्त्र रेशमी नहीं माने गये हैं।
५-किसी भी व्यक्तिको 'अस्पृश्य' मानकर उसका तिरस्कार न करना।
जाति मात्र सामाजिक कल्पना है अतः अतात्त्विक है। अस्पृश्यता का आरोप कृत्रिम है । सबल वर्गका साधारण वर्गके प्रति अहंकार और घृणा कर्म-बंधनके कारण है। अणुव्रती किसी जाति विशेषके प्रति अस्पृश्य होनेका विश्वास न रखें, किसी व्यक्ति विशेषको भी जातीयतासे. अस्पृश्य न माने। किसी भी ब्यक्तिका जाति कारणसे बाचिक और कायिक तिरस्कार करनेका तो उसे त्याग ही है।
स्पष्टीकरण किसी व्यक्तिकी शारीरिक या वेषभूषा जन्य गन्दगीके लक्ष्यसे उसे सभ्यतापूर्वक दूर होनेके लिये कह देना पड़ता हो व स्वयं दूर हो जाना पड़ता हो तो तिरस्कारकी कोटिमें नहीं होगा। क्योंकि वह असहयोग चाहे हरिजनके साथ ही क्यों न हो जातीयताको लेकर नहीं है ।
६- बृहत् जीमनवार न करना और यदि राजकीय नियम हो तो उसका उल्लंघन न करना ।
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