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अणुव्रती-संघके प्रवर्तक आंचायवर श्री तुलसीके चरणोंमें
समर्पण सर्वस्व !
” यद्यपि जीवनकी प्रत्येक दृष्टि आपके इङ्गितसे अनुप्राणित है और वह आपकी ही है, अणुव्रती-संघके आदि उपक्रमसे आज तक आपके निकटतम सम्पर्क में रह कर जहाँ तक मैं आपकी एतद् विषयक दृष्टिको हृदयङ्गम कर सका उसे स्वभाषामें अभिव्यक्त करनेका प्रस्तुत आयास, 'अणुव्रत-दृष्टि' है।
महर्षे !
समस्याओंसे आक्रान्त आजके इस विषम युगमें अणुव्रत-व्यवस्था एक सहज समाधान है। संसार इसे अणुव्रत-दर्शन या अणुव्रतवाद न भी कहे, तो भी यह तो मानना ही होगा कि यह मानवताके धरातलको मर्यादित करनेवाली एक आर्ष-दृष्टि है। युगालोक !
इस अकिंचन उपहार कर देनेके परिणाम स्वरूप तो मैं अपने आपको कृतकृत्य मानकर आज किसी विशेष आनन्दका अनुभव नहीं कर रहा हूं किन्तु जिस अणुव्रती-संघके विषयमें सोचना, लिखना, बोलना जीवनका एक ध्येय बन चुका है, उस ओर मैं दो 'डग' भर सका, यही मेरे हर्षका विषय है।
मुनि नगराज
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