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अणुव्रत - दृष्टि
ग - आध्यात्मिकता के प्रचार द्वार गृहस्थ जीवन के नैतिक स्तर को ऊंचा करना ।
घ - अहिंसा के प्रचार द्वारा विश्वमैत्री व विश्वशांति का प्रसार
करना ।
उद्देश्य की पवित्रता में सन्देह को अवकाश नहीं है। संघ का उद्देश्य विशुद्ध आध्यात्मिक है । अहिंसा एक आध्यात्मिक अस्त्र था। महात्मा गांधी ने उसका उपयोग राजनीति में किया। सारे संसारने उसका महत्व समझा । त्याग और संयम भी आध्यात्मिक शस्त्र हैं । सामाजिक और आर्थिक क्षेत्र में यदि इनका विधिवत् प्रयोग हुआ तो इनके महत्त्व को भी संसार समझेगा । 'अणुव्रती संघ' के समस्त नियम त्याग और संयम पर ही आधारित हैं । वस्तुतः 'अणुव्रती - संघ' आज के सामाजिक व आर्थिक जीवनकी विभिन्न समस्याओं का एक सजीव हल है।
३ - इस संघ में सम्मिलित होनेवाला व्यक्ति 'अणुव्रती' कहा जायगा ।
अणुव्रतोंको धारण करनेवाला अणुत्रवी नामसे पुकारा जायगा । इस धारा का उद्देश्य 'संघ' शब्द के साथ व्यवहृत 'अणुव्रती' विशेषण को स्पष्ट कर देता है। विशेष संज्ञा निर्धारण की सार्थकता यही है कि अणुव्रती जिस व्यापार, नौकरी आदि जिस किसी सामाजिक क्षेत्र में प्रवेश करेगा उसकी प्रवृत्ति में अवश्य विलक्षण आदर्श होगा। वह आदर्श यदि अणुव्रती शब्द के साथ प्रख्यात होगा तो अवश्य वह 'अणुव्रती - संघ' की प्रतिष्ठा को बल देगा अर्थात् उसके प्रचार का कारण बनेगा। इस धाराके पीछे एक अन्तरङ्ग दृष्टिकोण यह है कि यदि अणुव्रती होते हुए किसी ने अपने नियमों की उपेक्षा की तो वह अणुव्रती संज्ञा से परिचित होने के कारण जनता द्वारा प्रतिक्षण सावधान किया जाता रहेगा ।
४ - संघ में सम्मिलित करने का अधिकार एक मात्र 'संघ - प्रवर्त्तक' को रहेगा ।
'संघ - प्रवर्त्तक' की कल्पना और प्रवेश- अधिकार को उनके हाथों तक
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