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ब्रह्मचर्य-अणुव्रत
स्पष्टीकरण ८-१० वर्षतककी बालिकाके विषयमें नियम प्रतिबन्धक नहीं है ।
विशेष परिस्थिति-यात्राके प्रसङ्गमें जहाँ स्थानाभाव व अन्य किसी विशेष कारणसे एक कमरेका शयन आवश्यक हो । ___घरमें माता, बहन, भाभी आदिके अतिरिक्त कोई तीसरा व्यक्ति हो ही न तब और स्थानाभावकी स्थितिमें नियम लागू नहीं है।
रोगादिकी अवस्थामें अणुव्रतीको किसी महिला व अणुव्रतीके पास किसी महिलाको शयनं करना आवश्यक हो तो नियम अबाधक है।
उक्त स्थितियों में भी लोक-व्यवहारका पूरा ध्यान रखना अणुव्रतीको उचित है किन्तु विशेष स्थितियोंका नाम लेकर भी यदि कोई अणुव्रती लोक-निंदाका कारण बना तो वह संघ-प्रवर्तक द्वारा उपालम्भका भागी बन सकता है।
ह-अकेले पर-पुरुषके साथ न घूमना, न खेलना और न सिनेमा आदिमें जाना। ___ भारतवर्षकी प्राचीन संस्कृति चरित्र-प्रधान रही है। उसके अनुसार भारतवर्षकी समाज-व्यवस्था भी ऐसी बनी जिसमें स्त्रियों और पुरुषोंका एक कार्य-क्षेत्र न होकर, घर और बाजार स्पष्ट दो कार्य-क्षेत्र रहे हैं। संभवतः इसका प्रमुख लक्ष्म चरित्रकी सुरक्षा ही था। आजकी संस्कृति बहुत कुछ बदलती-सी नजर आ रही है । पाश्चात्य संस्कृतिका अनुसरण करते हुए लोग स्त्रियों और पुरुषोंके कार्य-क्षेत्रकी अभिन्नतामें विश्वास करने लगे हैं। एक भी अणुव्रती इस बातका पक्षपाती तो सम्भवतः न हो कि त्रियांका विकास गृह-कार्यके अतिरिक्त होना ही नहीं चाहिए किन्तु वह इस बातका समर्थक तो हो भी नहीं सकता कि चरित्र गौण है और विकास प्रमुख। उसकी दृष्टि चरित्रको खोकर किसी भी विकास और उत्थानको प्राप्त करनेके लिये प्रस्तुत नहीं होगी। उक्त नियम आने वाली संस्कृतिमें जो प्रत्यक्ष नैतिक पतनका कारण है उस व्यवहार पर सीधा प्रतिबन्ध लगाता है। युग सब के साथ त्रियोंको भी स्वतन्त्रता
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