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________________ गोत्रिकादिसिध्यर्थं गवांसह हो गोत्रा साऽस्मिन्नसीति गोत्रिक मिनियनन्याः कैय्यटेनमाष्याभिप्राय वनमात्र नननाविकां तत्पतेरेव न्याय्यत्वादन्यथा एक विंशतिरेकचचारिंशद्दा स्पा स्तीत्यत्रातिप्रसंगाला तर वापरतो षान्यज्ञान र माहाअथवे प्रस्मिंश्चयज्ञे गौ त्रिकमित्यनभि मतं लक्ष्य ने अभिमत वेव प्राशिस्वादानइत्य नोमेंद्र के तुन्य इत्यनुवन्यसमा धेयमिन्यान नाक भाष्पपर्यालोचनया के पटे क्तौ विरोध लेशस्पाम्पम शथवेत्यादियज्ञांतरस्य कैय्य रोक्स्प गोमस्पनई तिल हाणायामुक्तार्थ निमत्वर्थीयात्प तिरे वलोयपदार्थइत्येवंयर स्थान उत्पन्न हतितात्पर्यकत्वाभावान्प्रागिवादात इत्याद्य कोर्ने प्यल्पान्या गोत्रिकेनिसि दावपि गौशक टिके पसिभ वक्तानि सगस्यानभिधानादितिवद नाभाष्यकृनैवपरितत्वाज्ञा स्मादत्त निति त मिनि कैय्पर सम्पग वोच दिति दिका है या दाहा श्राहत प्रशंसा विशिष्टे वर्तमाना इशानमवयाचा हतमितिष्प्राननमा हतेतोड नैनेन निष्पन्नरूपमनिप्रशस्तंनद्वानरूपः। नुप Dharmartha Trust J&K. Digitized by eGangotri कमि४
SR No.034463
Book TitleSiddhant Kaumudi Vyakhyan Vyakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages507
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size390 MB
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