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________________ अथर्वशः। अथवइति भाष्यात्साधुः गाथिविदा आपत्येप्यशिप्रकृतिभावार्थमिदागाधिना वेदथिनः के शिनगाशनः राय सत्रिया कौरव्यइति कुर्वादिभ्योरायत तला नडति का दिषु कौर व्यश हत्य अध्यनन तचको व्यायुरितिभाव्यमितिचे सत्य कुरूंना पोरापतत्रियगोत्रविहिनोयोग्य स्तद तनत्रताप्रकाश गोत्रप्रत्ययान मिन्यव श्चापकर निऋष्पध के न्परम्। ३त्रोल कावा सिद्धति पराम्। इजोल कानै के तिति का दिभ्यः फिञ्जननोन्प्रर लुका वामरथाइ नि कुवी दिल्व नयनतः करावा दिभ्योगोत्रइति छापवादशेषिको रगत स्पन लुका. किंदा ज्ञायण ऋष्यश वेनिशान सकिए वाणि निभावः । नविगो लुगचिता जस्पतिच सत्रह के प्परविरुहानिशहा दिनश्वानि इनिशतत इज्जुनस्य राज्ञत्रियनि लगिसक्तवान्सत्य पानि शहोयोग कोनत्वषिवाचकइत्पदोष) अथवादासीपुत्रस्य पाणि नेरिति भाष्यप्रयोगासा श्वनी मिशन लुगितिल कप प्रिन्ययल होने नत्वमस्तीतिभाका गोत्रे पइञिति । गोत्रं चयारिभाषिक मे Dharmartha Trust J&K. Digitized by eGangotri
SR No.034463
Book TitleSiddhant Kaumudi Vyakhyan Vyakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages507
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size390 MB
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