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________________ श्रन्यातिमा तस्याश्रावश्यक त्वेन समर्थानामित्यस्येव निष्क ल्यात् । नवसुवन्तात्तद्वित इत्पत्रमा नामावः विका लननेधित्य लुग्विधानम्प २ प्रथमादित्यवपदिनिहर तो पिव्याख्यान चिंत्या खबनाता नान्यतिरितिसि तस्यकुलम ततया समर्थ परिभाषये वगनार्थत्वात् नचनद पिसमधी नामित्यनेनैवल ब्धमितिवाच्या निपिपलविधान शा | भानुयपनमिनियन कायन उज्ञापकाश्रयसाथि धनस्यायत्यसां स्य विभक्ति निर्देश चावला भावना त्वात् नचाणातिपदिकादित पर्थ मात्राये सेवयुक्ते निवाच्या ज्यायानियदिकग्रन नि षष्ठयनादिति व्याख्यानेन निक विभक्ति विधायक बाध कल्पना या गावापत्यशहस्य संबंधिशाचादेव षष्ट्यर्थ लाभीपत्रातस्पावे चेन स्वपैमान पू नाही परिनिष्ठितत्व मिति तथाच समर्थादित्येव बची हैन संधातिएनञ्च विभक्तिः प्राग्भाग स्पैवेनिबोध्यो बाम शामागावे न्यादिनि ईशा ईतरंगा नयीतिन्या प४ Dharmartha Trust J&K. Digitized by eGangotri
SR No.034463
Book TitleSiddhant Kaumudi Vyakhyan Vyakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages507
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size390 MB
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