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________________ बहुवचनांत घटनषष्ठीतत्पुरुषस्वाश्रितशनचा स्मिन्नमिया मिमता सिद्धिगहद्दिश देन विधौल स्वावद्धिः प्रतीयत इत्याशयेनै वयः रूखा या हर्नि रोनीयनड मित्रमित्युक्तनयाह दिशा तैमष्यसम्मतवात तथाच या बहुद्धिप्रतिस्वरूप योग्यत्वे सति शिवेन विहितयत्किंचिद्दिय लोपहितत्वमेव न हद्दिनिमिन्नत्वमिति भाष्यार्थः कन्पथा देवांनहिन स्पारन विकारइत्येव येता तो मानाभावइत्युक्तिः केषा चिनिरस्ता अन्य या पारामानिया चोदाह समर्थ्यमानं भाष्णामूलकत्वेन पयन्नमेव स्पा तानस्ट रा हीना निमित्रमितियथा श्रनमाम्या द्रव द्विरय्क करूपस्यान वायुमशक्यत्वाता यह चंप निमित्तन्वनिषेस नियोगशिष्टनामा शातिप्रसंगभंगानथा चात्ररूप निवी धाम निविदा तन्त्र संकोच मानाभावाद नहानीन्यादिनला संगवेचेन्या स्ताव स्वीवाहिकाममा बर् Dharmartha Trust J&K. Digitized by eGangotri प्रकाश ताम्
SR No.034463
Book TitleSiddhant Kaumudi Vyakhyan Vyakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages507
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size390 MB
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