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उन्हें देखकर शिवकुमारको जातिस्मरण हो आया। शिवकुमारने अपने माता पितासे दीक्षा लेनेकी अनुमति माँगी, परन्तु उन्होंने दीक्षाकी अनुमति न दी। शिवकुमार ६४००० वर्षतक घरमें तपश्चया करते हुए रहने लगे। अन्तमें सागरचन्द्र और शिवकुमार दोनोंके जीव ब्रह्मोत्तर स्वर्गमें गये। शिवकुमार तपश्चरणके प्रभावसे विद्युन्माली नामका यह देव हुआ है।"
तत्पश्चात् श्रेणिक राजाने विद्युन्मालीकी चार देवियों के विषयमें विशेष जाननेकी जिज्ञासा प्रकट की। गौतम स्वामीने कहा कि चंपापुरी नामकी नगरीमें सूरसेन नामक कोई सेठ रहता था। इसके चार स्त्रियाँ थीं। पापोदयसे सेठका शरीर रोगग्रस्त हो गया। वह अपनी स्त्रियोंको मारने पीटने लगा और उन्हें नाना प्रकारके कुत्सित वचन बोलने लगा। स्त्रियोंने अति दुःखित होकर अर्जिकाके व्रत ग्रहण किये। ये देत्रियाँ मरकर इसी स्वर्गमें विद्युन्मालीकी देवियाँ हुई हैं।
श्रेणिक राजाके विद्युचरके विषयमें प्रश्न करनेपर गौतम स्वामीने कहा कि हस्तिनापुरके संवर नामके राजाके विधुच्चर नामका पुत्र हुआ। विद्युच्चरने सब विद्याओंमें कुशलता प्राप्त की थी। एक चौर्यविद्या ही ऐसी रह गई थी जो उसने नहीं सीखी थी। राजाने विद्युचरको बहुत समझाया, पर उसने चोरी करना न छोड़ा। विद्युच्चर राजगृह नगरमें जाकर कामलता वेश्याके साथ रमण करते हुए समय व्यतीत करने लगा। गौतम स्वामीने कहा कि यह विद्युन्माली देव राजगृह नगरीमें अर्हद्दास नामक सेठके पुत्र होगा, और उसी भवसे मोक्ष जावेगा।
यह कथन हो ही रहा था कि इतनेमें एक यक्ष वहाँ आकर