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Verses 111, 112
दुर्लभमशुद्धमपसुखमविदितमृतिसमयमल्पपरमायुः । मानुष्यमिहैव तपो मुक्तिस्तपसैव तत्तपः कार्यम् ॥१११॥
अर्थ - यह मनुष्य पर्याय दुर्लभ, अशुद्ध और सुख से रहित (दु:खमय) है। मनुष्य अवस्था में मरण का समय नहीं जाना जा सकता है। तथा मनुष्य की पूर्वकोटि प्रमाण उत्कृष्ट आयु भी देवायु आदि की अपेक्षा स्तोक है। परन्तु तप मनुष्य पर्याय में ही किया जा सकता है और मुक्ति उस तप से ही प्राप्त की जाती है। इसलिये तप का आचरण करना चाहिये।
This human mode-of-existence - manusya paryāya - is difficult to attain, impure, and void of happiness. In this mode, the time of death cannot be known. Even the longest possible age of a human being is short when compared to the age of a celestial being. Still, austerity (tapa) can be observed only in the human mode-ofexistence and liberation can only be attained through observance of austerity.
आराध्यो भगवान् जगत्त्रयगुरुर्वृत्तिः सतां सम्मता क्लेशस्तच्चरणस्मृतिः क्षतिरपि प्रप्रक्षयः कर्मणाम् । साध्यं सिद्धिसुखं कियान् परिमितः कालो मनः साधनं सम्यक्चेतसि चिन्तयन्तु विधुरं किं वा समाधौ बुधाः ॥११२॥
अर्थ - ध्यान में तीनों लोकों का स्वामी परमात्मा आराधना करने के योग्य है। इस प्रकार की प्रवृत्ति सज्जनों को अभीष्ट है। उसमें यदि कुछ
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