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Atmānusāsana
आत्मानुशासन
हा कष्टमिष्टवनिताभिरकाण्ड एव चण्डो विखण्डयति पण्डितमानिनोऽपि । पश्याद्भुतं तदपि धीरतया सहन्ते दग्धुं तपोऽग्निभिरमुं न समुत्सहन्ते ॥१०१॥
अर्थ - बड़े खेद की बात है कि जो अपने को पण्डित समझते हैं उनको भी यह अत्यधिक काम (विषयवांछा) असमय में ही इष्ट स्त्रियों के द्वारा विखण्डित करता है। फिर भी देखो यह आश्चर्य की बात है कि वे उसे (कामकृत विखण्डन को) भी धीरतापूर्वक सहन करते हैं, किन्तु तपरूप अग्नि के द्वारा उस काम को जलाने के लिये उत्साह को नहीं । करते हैं।
It is a pity that even those who consider themselves to be wise get destroyed unpredictably by the strong sensualdesire for lovely women. It is surprising that these men accept, with fortitude, such destruction brought about by their sensual-desires and do not attempt to burn down their sensual-desires by the fire of austerities.
अर्थिभ्यस्तृणवद्विचिन्त्य विषयान् कश्चिच्छ्रियं दत्तवान् पापां तामवितर्पिणीं विगणयन्नादात् परस्त्यक्तवान् । प्रागेवाकुशलां विमृश्य सुभगोऽप्यन्यो न पर्यग्रहीत्एते ते विदितोत्तरोत्तरवराः सर्वोत्तमास्त्यागिनः ॥१०२॥
अर्थ - कोई विद्वान् मनुष्य विषयों को तृण के समान तुच्छ समझकर लक्ष्मी (धन-सम्पत्ति) को याचकों के लिये दे देता है। दूसरा कोई
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