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अविज्ञातस्थानो
व्यपगततनुः
खलो राहुर्भास्वद्दशशतकराक्रान्तभुवनम् । स्फुरन्तं भास्वन्तं किल गिलति हा कष्टमपरः ' परिप्राप्ते काले विलसति विधौ को हि बलवान् ॥७६॥
पापमलिनः
अर्थ - जिसका स्थान अज्ञात है, जो शरीर से रहित है, तथा जो पाप से मलिन अर्थात काला है वह दुष्ट राहु निश्चय से प्रकाशमान एक हजार किरणोंरूप हाथों से लोक को व्याप्त करने वाले प्रतापी सूर्य को कवलित करता है, यह बड़े खेद की बात है; ठीक है- समयनुसार कर्म का उदय आने पर दूसरा कौन बलवान् है? आयु के पूर्ण होने पर ऐसा कोई भी बलिष्ठ प्राणी नहीं है जो मृत्यु से बच सके।
१ पाठान्तर
It is a great pity that the wicked Rāhu, of unknown abode, trunkless* and black with sin, verily swallows the glowing and powerful sun that embraces the earth with its thousand dazzling arms (rays). Indeed, no one is more powerful than karmas when these get to fruition. With completion of the age-karma (ayuḥ), no one can escape death.
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कष्टमपरम्
* In Hindu mythology, Rāhu has only the head, and not the trunk.
Verse 76
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