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________________ आचार्य कुन्दकुन्द द्वारा रचित 'प्रवचनसार' एक अनुपम, सुप्रसिद्ध, शाश्वत एवं आध्यात्मिक ग्रन्थ है। स्वात्मानुभूति के लिए इस ग्रन्थ परकी का अध्ययन अति आवश्यक है। 'प्रवचनसार' ग्रन्थ का यह संस्करण हिन्दी व अंग्रेजी में अनुवाद तथा व्याख्या सहित होने के कारण इस युग के श्रावक-श्राविकाओं तथा विदेशों में रहने वाले प्रबुद्ध जिज्ञासुओं के लिए अमृत तुल्य है। इस ग्रन्थ का स्वाध्याय अनुपम आध्यात्मिक सुख की अनुभूति कराता है। श्री विजय कुमार जैन को मेरा आंतरिक मंगल आशीर्वाद है। वे दीर्घायु हों, उत्तम सुख सदैव उनका सहकारी हो और माँ जिनवाणी की सतत् सेवा करते रहें। इनका माँ जिनवाणी के प्रति समर्पण अलौकिक तथा अनुपमेय है। हस्तिनापुर, अप्रैल 2018 आचार्य 108 श्री निःशंकभूषण मुनि 'प्रवचनसार' में निर्दिष्ट किया गया है कि जिस समय जिस स्वभाव से द्रव्य परिणमन करता है उस समय उसी स्वभावमय द्रव्य हो जाता है। (गाथा 1-8) अतः कषायों से युक्त आत्मा कषाय ही है। राग-सहित आत्मा संसारी ही है। राग-रहित आत्मा को ही मोक्ष है। जो पूज्य वीतराग अर्हन्त देव को द्रव्य, गुण, पर्याय से जानता है वह अपने स्वरूप को जानता है और निश्चयकर उसी का मोह क्षीण होता है। (गाथा 1-80) ऐसे गूढ शास्त्र का स्वाध्याय श्रावक व श्रमण दोनों के लिए आवश्यक है। 'प्रवचनसार' के उपरान्त 'समयसार' ग्रन्थराज का अध्ययन करने से वस्तु-स्वरूप का सच्चा बोध होता है। श्री विजय कुमार जैन का यह कार्य अत्यंत सराहनीय है। उनको मेरा मंगल आशीर्वाद है। उनको इस कार्य में सफलता प्राप्त हो। हस्तिनापुर, अप्रैल 2018 मुनि 108 श्री भावभूषण महाराज विकल्प Vikalp Printers
SR No.034445
Book TitlePravachansara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay K Jain
PublisherVikalp Printers
Publication Year
Total Pages407
LanguageHindi, Sanskrit, English
ClassificationBook_Devnagari & Book_English
File Size16 MB
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