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Pravacanasăra
those dispositions and gets into psychic - bondage (bhāvabandha); as a consequence, it is bound with (eight kinds of) material-karmas (dravyakarma).
Explanatory Note: The soul (jīva) has cognition (upayoga) that manifests in form of knowledge (jñāna) and perception (darśana). When it knows and sees the objects of the senses with dispositions of delusion (moha), attachment (rāga) and aversion (dvesa), its cognition (upayoga) transforms into such dispositions. This transformation of cognition (upayoga) is impure-cognition (aśuddhopayoga), the cause of psychic-bondage (bhāvabandha). The (eight kinds of) material-karmas (dravyakarma) are bound according to the psychic - bondage (bhāvabandha).
फासेहिं पोग्गलाणं बंधो जीवस्स रागमादीहिं । अण्णोण्णमवगाहो पोग्गलजीवप्पगो भणिदो 112-8511
स्पर्शैः पुद्गलानां बन्धो जीवस्य रागादिभिः । अन्योन्यमवगाहः पुद्गलजीवात्मको भणितः ॥2-85॥
सामान्यार्थ [ स्पर्शैः ] यथायोग्य स्निग्ध- रूक्ष स्पर्श गुणों से [ पुद्गलानां ] पुद्गल-कर्म-वर्गणाओं का आपस में [ बन्धः ] मिलकर एक पिण्ड - रूप बंध होता है, [ रागादिभिः ] पर- उपाधि से उत्पन्न चिद्विकार - रूप राग, द्वेष, मोह परिणामों से [ जीवस्य ] आत्मा का बंध होता है, [ अन्योन्यं ] परस्पर में परिणामों का निमित्त पाकर [ अवगाहः ] एकक्षेत्र में जीव-कर्म का बंध होना [ पुद्गलजीवात्मकः ] वह पुद्गल-कर्म और जीव इन दोनों का बंध [ भणितः ] कहा गया है।
Due to their quality of touch (sparsa) - greasiness or roughnessthe karmic molecules - kärmāṇa-vargaṇā form new bonds
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